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Jagannath Rath Yatra
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Jagannath Rath Yatra Ki Adbhut Kahaniyan : नाराज लक्ष्मी और रसगुल्ले से मनुहार की मिठास

Jagannath Rath Yatra Ki Adbhut Kahaniyan : नाराज लक्ष्मी और रसगुल्ले से मनुहार की मिठास

Jagannath Rath Yatra

Jagannath Rath Yatra ओडिशा का एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है। हर साल लाखों भक्त भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की इस यात्रा में शामिल होते हैं। यह यात्रा 7 जुलाई को शुरू होती है और एक महीने तक चलती है। इस यात्रा का एक प्रमुख आकर्षण रसगुल्ले हैं, जो भगवान जगन्नाथ और देवी लक्ष्मी के बीच की एक दिलचस्प कहानी से जुड़े हैं।

एकांतवास और स्वस्थ भगवान :

Jagannath Rath Yatra से पहले, भगवान जगन्नाथ बीमार हो जाते हैं और 15 दिनों के लिए ‘अनासरा’ में रहते हैं। इस दौरान किसी को भी उनके दर्शन नहीं होते। यह समय भगवान के एकांतवास और उपचार का होता है। सेवक भगवान के शरीर पर फुलुरी तेल का लेप करते हैं और उन्हें खली प्रसाद देते हैं। यह सब एक विशेष विधि के तहत किया जाता है जिसमें केवल दइतापति और महापात्र सेवक ही शामिल होते हैं।

7 जुलाई को भगवान जगन्नाथ का ‘नैनासर’ या नेत्र उत्सव मनाया जाता है। इस दिन भगवान के नेत्र खोले जाते हैं और वह फिर से अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। इसके तुरंत बाद रथयात्रा निकाली जाती है। रथयात्रा का उद्देश्य भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को मंदिर से बाहर ले जाकर भक्तों को दर्शन देना होता है।

Jagannath Rath Yatra की लोककथा :

एक लोककथा के अनुसार, जब भगवान जगन्नाथ और देवी सुभद्रा बीमार थे, तो देवी सुभद्रा ने श्रीकृष्ण से कहा कि उन्हें बाहर घूमने का मन हो रहा है। श्रीकृष्ण ने बलभद्र को बताया और उन्होंने भी सहमति दे दी। तीनों भाई-बहन रथ पर चढ़कर गुंडिचा मंदिर की ओर निकले। यह मंदिर समुद्र तट पर स्थित है और भगवान की मौसी का घर माना जाता है। यहां भगवान और उनके भाई-बहन कुछ दिन रहे और मौसी ने उनका खूब ध्यान रखा।

द्वारिका धाम की एक और कथा के अनुसार, श्रीकृष्ण, बलभद्र और सुभद्रा ने माता रोहिणी से अपने बचपन की कथाएं सुनीं और गोकुल वासियों से मिलने के लिए व्याकुल हो गए। तीनों रथ पर सवार होकर गोकुल पहुंचे और वहां सात दिन रहे। गोकुल में अपने पुराने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलकर भगवान इतने रम गए कि द्वारिका लौटना भूल गए। तब रुक्मिणी, जो लक्ष्मी जी मानी जाती हैं, गोकुल आईं और उन्हें कर्तव्यों की याद दिलाकर वापस द्वारिका ले गईं। इस प्रसंग की याद में रथयात्रा निकाली जाती है।

लक्ष्मी की नाराजगी और हेरा पंचमी :

जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा घूमने निकले थे, तो उन्होंने लक्ष्मी जी से कहा था कि वे दो दिन में लौट आएंगे। लेकिन दो दिन बीतने के बाद भी वे नहीं लौटे। लक्ष्मी जी तीन दिन तक इंतजार करती रहीं। पांचवें दिन लक्ष्मी जी का सब्र टूट गया और वे भगवान को खोजने निकल पड़ीं। यह दिन ‘हेरा पंचमी’ कहलाता है। ‘हेरा’ का अर्थ है ‘खोजना’।

लक्ष्मी जी गुंडिचा मंदिर पहुंचीं और देखा कि भगवान जगन्नाथ सुभद्रा के साथ झूले पर बैठकर मिठाई खा रहे हैं। उन्हें गुस्सा आया और उन्होंने भगवान जगन्नाथ के रथ का पहिया तोड़ दिया। फिर वे अपने एकांतवास मंदिर, ‘हेरा गोहिरी साही’ लौट गईं।

Jagannath Rath Yatra में रसगुल्ले का महत्व :

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जब भगवान जगन्नाथ को लक्ष्मी जी की नाराजगी का पता चला, तो वे लक्ष्मी जी को मनाने के लिए ‘हेरा गोहिरी साही’ पहुंचे। उनके हाथ में एक मटका था, जिसमें सफेद रसगुल्ले थे। लक्ष्मी जी ने द्वार खोलने से इंकार कर दिया। भगवान जगन्नाथ ने कहा कि वे भूखे-प्यासे यहीं बैठेंगे और रसगुल्ले भी नहीं खाएंगे। यह सुनकर लक्ष्मी जी द्रवित हो गईं और उन्होंने द्वार खोल दिया। भगवान जगन्नाथ ने लक्ष्मी जी को रसगुल्ला खिलाया, जिससे लक्ष्मी जी की नाराजगी खत्म हो गई और वे हंस पड़ीं।

Jagannath Rath Yatra  के समापन पर ‘नीलाद्रि बिजै’ मनाया जाता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा श्रीमंदिर लौटते हैं। श्रीमंदिर में लक्ष्मी जी के साथ रसगुल्लों का भोग लगता है। यह दिन ‘रसगोला दिबस’ के नाम से भी जाना जाता है। पुरी में हर जगह रसगुल्ले बांटे जाते हैं और लोग इसका प्रसाद ग्रहण करते हैं।

सांस्कृतिक धरोहर और GI टैग :

रसगुल्ले ओडिशा की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान हैं। साल 2019 में ओडिशा के रसगुल्ले को GI टैग मिला है। पहले यह टैग पश्चिम बंगाल को मिल रहा था, लेकिन ओडिशा ने आपत्ति जताते हुए कहा कि यह उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान है। चार साल की कानूनी लड़ाई के बाद ओडिशा ने यह सम्मान प्राप्त किया।

Jagannath Rath Yatra और रसगुल्ले की कथा एक अद्भुत मिश्रण है धार्मिक, सांस्कृतिक और मिठास की। यह यात्रा न केवल भगवान जगन्नाथ की भक्ति का प्रतीक है, बल्कि ओडिशा की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का भी हिस्सा है। हर साल लाखों लोग इस यात्रा में शामिल होते हैं और भगवान के दर्शन के साथ-साथ रसगुल्ले का आनंद भी लेते हैं। रसगुल्ले की मिठास भगवान जगन्नाथ और देवी लक्ष्मी के बीच की उस मधुर मनुहार को जीवंत करती है, जो भक्तों के दिलों में सदियों से बसी हुई है।

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