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Kanwar Yatra 2025 : कब शुरू हो रही कांवड़ यात्रा? जानिए इसका पौराणिक महत्व और संपूर्ण विवरण

Kanwar Yatra 2025 : कब शुरू हो रही कांवड़ यात्रा? जानिए इसका पौराणिक महत्व और संपूर्ण विवरण.

Kanwar Yatra

Kanwar Yatra 2025 : हर साल सावन के महीने में उत्तर भारत के शहरों और गांवों की सड़कों पर भगवा वस्त्र पहने, गंगाजल से भरे कांवर उठाए, “बोल बम” के जयघोष करते हुए शिवभक्तों का जनसैलाब उमड़ पड़ता है। यह जनसैलाब कांवड़ यात्रा का प्रतीक है – एक ऐसी पवित्र वार्षिक तीर्थयात्रा जिसमें भगवान शिव के भक्त सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर पवित्र गंगा जल इकट्ठा करते हैं और उसे अपने स्थानीय या किसी प्रसिद्ध शिव मंदिर में अर्पित करते हैं।

यह यात्रा भक्ति, अनुशासन, आत्मबल, और सांस्कृतिक एकता की मिसाल है। कांवड़ यात्रा सिर्फ एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि एक सामूहिक आस्था आंदोलन है जिसमें भाग लेने वाले ‘कांवड़िए’ कहलाते हैं।

Kanwar Yatra 2025 : तारीखें और अवधि

Kanwar Yatra 2025 की शुरुआत 11 जुलाई 2025 (शुक्रवार) को होगी, जो कि गुरु पूर्णिमा के एक दिन बाद और श्रावण मास के पहले दिन है। यह यात्रा 23 जुलाई 2025 (बुधवार) को समाप्त होगी, जब सावन शिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा।

इस 13 दिवसीय यात्रा में लाखों कांवड़िए शामिल होंगे जो भारत के विभिन्न हिस्सों – खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान – से आते हैं।

कांवड़ यात्रा का इतिहास और पौराणिक महत्व

कांवड़ यात्रा की जड़ें त्रेता युग से जुड़ी मानी जाती हैं। मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने स्वयं कांवर में गंगा जल लेकर शिवलिंग पर अर्पित किया था।

इसके अलावा, समुद्र मंथन की पौराणिक कथा के अनुसार, जब समुद्र से हलाहल विष निकला, तो भगवान शिव ने उसे पीकर संसार की रक्षा की। यह विष उनके कंठ में अटक गया, जिससे वे ‘नीलकंठ’ कहलाए। भक्तों का विश्वास है कि गंगा जल शिव को चढ़ाने से इस विष का प्रभाव शांत होता है और यह जल भगवान को शीतलता प्रदान करता है।

कांवड़ यात्रा कैसे होती है? संपूर्ण प्रक्रिया

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  1. पवित्र जल का संग्रह
    कांवड़िए गंगोत्री, गौमुख, हरिद्वार, ऋषिकेश, सुल्तानगंज जैसे तीर्थस्थलों से गंगाजल इकट्ठा करते हैं। बिहार में लोग सुल्तानगंज में स्थित अजगैबीनाथ मंदिर से जल भरते हैं क्योंकि वहां की गंगा उत्तरवाहिनी है, यानी उत्तर दिशा की ओर बहती है, जो अत्यंत शुभ मानी जाती है।

  2. कांवड़ की बनावट
    ‘कांवड़’ एक बांस की छड़ी होती है, जिसके दोनों छोरों पर गंगाजल से भरे बर्तन बांधे जाते हैं। इसे कांवड़िए अपने कंधों पर संतुलित करते हैं और अधिकांश समय पैदल ही चलते हैं।

  3. पैदल यात्रा
    यह यात्रा पूरी तरह से पैदल तय की जाती है। कई श्रद्धालु तो नंगे पांव चलते हैं और कहीं-कहीं रास्ते में दंडवत प्रणाम करते हुए आगे बढ़ते हैं। इस दौरान रास्ते में पड़ने वाले धर्मशालाओं, शिविरों में उन्हें भोजन, जल और विश्राम की सुविधा मुफ्त दी जाती है।

  4. शिव को अर्पण
    जल लाने के बाद कांवड़िए इसे अपने गांव, शहर या क्षेत्र के शिव मंदिर, जैसे कि काशी विश्वनाथ (वाराणसी), बाबा बैद्यनाथ (देवघर), नीलकंठ महादेव (ऋषिकेश) या पुरामहादेव (बागपत) में अर्पित करते हैं।

कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) के दौरान राज्यों में तैयारियां और व्यवस्था

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और दिल्ली सहित कई राज्यों में प्रशासनिक स्तर पर व्यापक तैयारियां होती हैं।

  • स्पेशल ट्रैफिक मैनेजमेंट: बड़े शहरों में विशेष रूट तय किए जाते हैं ताकि आम जनता और कांवड़ियों दोनों को असुविधा न हो।

  • मेडिकल सहायता: कांवड़ मार्गों पर चिकित्सा शिविर, एम्बुलेंस, और आपातकालीन टीम तैनात रहती हैं।

  • भोजन और विश्राम शिविर: स्थानीय समाजसेवी संगठन, धार्मिक संस्थाएं और प्रशासन मिलकर जगह-जगह लंगर, ठहरने और विश्राम की सुविधा प्रदान करते हैं।

कांवड़ यात्रा में भाग लेने वाले कौन होते हैं?

कांवड़ यात्रा में भाग लेने वाले श्रद्धालु को ‘कांवड़िया’ या ‘भोले’ कहा जाता है। इनमें—

  • युवा वर्ग,

  • महिलाएं,

  • बुजुर्ग,

  • बच्चे,

  • और कई बार परिवार के समूह शामिल होते हैं।

कांवड़िए अपने सिर पर भगवा पटका बांधते हैं, हाथों में त्रिशूल या झंडा लिए होते हैं, और शरीर पर ‘बोल बम’, ‘जय भोलेनाथ’, ‘हर हर महादेव’ जैसे नारों वाले वस्त्र पहनते हैं।

कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) का धार्मिक और सामाजिक महत्व

  1. भक्ति और साधना का मार्ग
    यह यात्रा एक कठिन तपस्या की तरह होती है। कांवड़िए अपनी दिनचर्या, खानपान और बोलचाल पर नियंत्रण रखते हैं। कई लोग पूरी यात्रा मौन व्रत में रहते हैं।

  2. सामूहिक सहभागिता
    यह यात्रा सामाजिक एकता को भी दर्शाती है। अलग-अलग वर्ग, जाति और समुदाय के लोग एक साथ यात्रा करते हैं। रास्ते में मिलने वाले सहयोग और सेवा भाव भी सामाजिक सौहार्द का उदाहरण है।

  3. संस्कार और संस्कृति का वाहक
    युवा पीढ़ी के लिए यह यात्रा भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं से जुड़ने का माध्यम बनती है। यहां जीवन की कठिनाइयों से लड़ने, संयम और धैर्य की सीख मिलती है।

 कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) पर्यावरण और जिम्मेदार आचरण की आवश्यकता

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हाल के वर्षों में यह यात्रा अत्यधिक भीड़भाड़ और शोर-शराबे के कारण कई बार विवादों में रही है। इसलिए—

  • ध्वनि प्रदूषण से बचने,

  • प्लास्टिक के उपयोग को रोकने,

  • और सड़क सुरक्षा नियमों का पालन करने की सख्त जरूरत है।

सरकार और सामाजिक संगठनों द्वारा ‘हरित कांवड़ यात्रा’ को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि यह पर्यावरण के अनुकूल बनी रहे।

प्रमुख स्थान जहां से जल उठाया जाता है

स्थान राज्य विशेषता
हरिद्वार उत्तराखंड सबसे प्रमुख जल भरने का केंद्र
गौमुख उत्तराखंड गंगा का उद्गम स्थल
गंगोत्री उत्तराखंड गंगा माता का प्राचीन मंदिर
सुल्तानगंज बिहार उत्तरवाहिनी गंगा और अजगैबीनाथ मंदिर
देवघर झारखंड बाबा बैद्यनाथ धाम, द्वादश ज्योतिर्लिंग में एक
  • हर साल लगभग 3 से 5 करोड़ श्रद्धालु कांवड़ यात्रा में भाग लेते हैं।

  • उत्तर भारत की यह सबसे बड़ी जनसमूह तीर्थयात्रा है।

  • कई श्रद्धालु ‘डाक कांवड़’ के रूप में भाग लेते हैं, जिसमें वे बिना रुके और दौड़ते हुए जल अर्पण करते हैं।

  • कुछ लोग कांवड़ यात्रा को बाइक या ट्रक कांवड़ के रूप में भी करते हैं, परंतु यह परंपरागत पद्धति से भिन्न है और आलोचनाओं का विषय भी बनती है।

निष्कर्ष : श्रद्धा और समर्पण की प्रतीक है कांवड़ यात्रा

Kanwar Yatra सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं है, यह श्रद्धा, तपस्या, और त्याग का पर्व है। यह भक्त और भगवान शिव के बीच संबंध को सुदृढ़ करने वाला मार्ग है। कांवड़ यात्रा भारतीय संस्कृति की जीवंतता और आध्यात्मिकता का प्रमाण है जो आधुनिक जीवन में भी अपनी जड़ें गहराई से जमाए हुए है।

यदि आपने अब तक इस यात्रा का हिस्सा नहीं बने हैं, तो 2025 एक बेहतरीन अवसर हो सकता है इस दिव्य और भावनात्मक अनुभव को जीने का।

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