Black Diamond Makhana : मखाना बोर्ड के गठन का ऐलान; कितने लोगों को रोजगार दे रहा ‘ब्लैक डॉयमंड’, कैसे होती है इसकी खेती
Black Diamond Makhana : मखाना बोर्ड के गठन का ऐलान; कितने लोगों को रोजगार दे रहा ‘ब्लैक डॉयमंड’, कैसे होती है इसकी खेती
1 फरवरी 2025 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपना आठवां केंद्रीय बजट पेश किया, जिसमें बिहार के Black Diamond मखाने (Makhana) को लेकर एक महत्वपूर्ण घोषणा की गई। उन्होंने बिहार में मखाना बोर्ड के गठन की योजना का ऐलान किया। मखाना, जिसे ‘ब्लैक डॉयमंड’ के नाम से भी जाना जाता है, की बढ़ती मांग ने न केवल इस क्षेत्र को विश्वभर में एक नई पहचान दिलाई है, बल्कि यह रोजगार सृजन और कृषि विकास के लिहाज से भी अहम बन गया है। इस लेख में हम मखाना बोर्ड के गठन, मखाने की खेती और इसकी बढ़ती लोकप्रियता पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
मखाना बोर्ड (Makhana Board) का गठन : क्या है इसकी आवश्यकता?
मखाना, जिसे हिंदी में ‘फॉक्स नट’ और अंग्रेजी में ‘लोटस सीड’ कहा जाता है, बिहार सहित अन्य राज्यों में विशेष रूप से उगाया जाता है। इस क्षेत्र में मखाना उद्योग ने ना केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है, बल्कि यह भारत के कृषि उद्योग में एक नये मोर्चे की शुरुआत भी कर रहा है। बिहार के मखाने की उत्पादन क्षमता और उसकी बढ़ती मांग को देखते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मखाना बोर्ड के गठन की घोषणा की है।
मखाना बोर्ड का उद्देश्य मखाना उद्योग को संगठित करना, किसानों को बेहतर मार्गदर्शन और तकनीकी सहायता प्रदान करना, और उत्पादकता में सुधार करना है। साथ ही, मखाना के निर्यात को बढ़ावा देना और इसके विपणन को वैश्विक स्तर तक पहुंचाना भी इस बोर्ड का अहम कार्य होगा।
मखाने की खेती (Makhana Cultivation) : एक शानदार अवसर
मखाने की खेती एक पारंपरिक और जल आधारित कृषि प्रक्रिया है। यह मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल में उगाया जाता है। बिहार के मिथिला और कोसी क्षेत्रों में मखाने की खेती प्रमुख रूप से की जाती है। मखाना पौधों की खेती सामान्यत: तालाबों और पोखरों में होती है, क्योंकि इसके विकास के लिए जलमग्न भूमि की आवश्यकता होती है।
मखाने के पौधे की खेती के लिए सबसे उपयुक्त समय मानसून के मौसम के बाद का होता है, जब जल स्तर स्थिर हो चुका हो। मखाना एक जलचर पौधा होता है, जो पानी के अंदर उगता है और इसके फूलों को तालाबों के ऊपर तैरते हुए देखा जा सकता है। पौधे के बीजों से मखाना का उत्पादन होता है, जिन्हें ताजे रूप में खाया जाता है और बाद में इन्हें सुखाकर स्नैक्स के रूप में बेचते हैं।
मखाना की खेती में समग्र प्रक्रिया:
- कृषि भूमि चयन: मखाना की खेती के लिए जलमग्न भूमि की आवश्यकता होती है। आमतौर पर तालाब या पानी से भरी हुई भूमि पर इसकी खेती की जाती है।
- बुआई: मखाने के बीज को मार्च से मई तक बोया जाता है। इसके लिए पानी का स्तर 1-1.5 मीटर तक होना चाहिए।
- उगाना और देखभाल: जैसे-जैसे पौधों की वृद्धि होती है, उन्हें समय-समय पर देखभाल की जरूरत होती है। पानी की गुणवत्ता पर भी ध्यान देना होता है।
- फूलों का विकसित होना: मखाने के फूलों का उत्पादन कुछ महीनों में होता है और ये पानी के ऊपर तैरने लगते हैं।
- कटाई और प्रसंस्करण: फूलों से मखाना का संग्रह किया जाता है, जिसे बाद में सुखाकर और भूनकर खाने योग्य बनाया जाता है।
‘ब्लैक डॉयमंड’: मखाने (Makhana) की बढ़ती मांग
मखाना, जिसे ‘ब्लैक डॉयमंड’ के नाम से भी जाना जाता है, की वैश्विक बाजार में काफी बढ़ोतरी हो रही है। तले हुए आलू के चिप्स और मीठे स्नैक्स की जगह मखाने ने एक स्वस्थ विकल्प के रूप में अपनी जगह बनाई है। इसमें प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम, आयरन और अन्य पोषक तत्व होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं।
भारत में मखाना का उपयोग विभिन्न प्रकार के स्नैक्स, मिठाइयाँ और हलवे बनाने में किया जाता है। इसके साथ ही, अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी इसकी मांग बढ़ रही है, विशेष रूप से अमेरिका, यूरोप और मध्य-पूर्व देशों में।
भारत सरकार मखाना उद्योग को बढ़ावा देने के लिए निर्यात को आसान बनाने के प्रयास कर रही है। इसके लिए विशेष कार्यक्रमों और प्रोत्साहनों की घोषणा की जा रही है, ताकि मखाने का निर्यात बढ़े और देश को इससे अधिक राजस्व मिले।
मखाना बोर्ड के जरिए रोजगार सृजन
मखाना बोर्ड का गठन बिहार और अन्य संबंधित क्षेत्रों में रोजगार सृजन का एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। मखाने की खेती में कई किसानों और श्रमिकों का हाथ होता है, जिनमें महिलाएं भी प्रमुख रूप से शामिल हैं।
रोजगार के अवसर:
- कृषि कार्य: मखाने की खेती के लिए खेतों की देखभाल, बुआई, कटाई, और प्रसंस्करण की प्रक्रिया में हजारों श्रमिकों की आवश्यकता होती है। यह कार्य विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों और श्रमिकों को रोजगार प्रदान करता है।
- प्रसंस्करण उद्योग: मखाने के प्रसंस्करण के लिए मिलों और फैक्ट्रियों की आवश्यकता होती है, जो लोगों को स्थिर रोजगार प्रदान करते हैं।
- विपणन और वितरण: मखाने के प्रसंस्करण के बाद इसे पैकेजिंग, ब्रांडिंग और विपणन के लिए वितरण केंद्रों में भेजा जाता है। इससे व्यापार और विपणन में भी रोजगार के अवसर बनते हैं।
- निर्यात व्यापार: मखाना बोर्ड के गठन से निर्यात व्यापार को भी बढ़ावा मिलेगा, जिससे विदेशों में भी रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे।
इसके अलावा, मखाना उद्योग में महिला उद्यमिता को भी बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि यह पारंपरिक रूप से महिला श्रमिकों द्वारा किया जाने वाला कार्य है।
मखाना उद्योग (Makhana Industry) के भविष्य की दिशा
मखाना उद्योग का भविष्य उज्जवल है। मखाना बोर्ड के गठन से इस उद्योग में एक संरचित विकास की संभावना उत्पन्न होगी। इसके अलावा, तकनीकी सुधार और विज्ञान आधारित कृषि पद्धतियाँ मखाने की पैदावार को और अधिक बढ़ा सकती हैं।
नवीनतम उपाय:
- वैज्ञानिक खेती तकनीक : मखाने की खेती को अधिक उत्पादक बनाने के लिए नई तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है, जैसे कि ड्रिप इरिगेशन और हाइड्रोपोनिक खेती।
- प्रसंस्करण में सुधार : मखाने के प्रसंस्करण की प्रक्रिया को स्वचालित करने और मशीनों के इस्तेमाल से उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है।
- वैश्विक विपणन : मखाने को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक पहचान दिलाने के लिए नए विपणन रणनीतियों और प्लेटफार्मों का उपयोग किया जा सकता है।
निष्कर्ष
मखाना, जिसे ‘Black Diamond’ के रूप में जाना जाता है, न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अपनी महत्वपूर्ण जगह बना चुका है। बिहार के मखाना बोर्ड के गठन की घोषणा ने इस उद्योग को और अधिक संगठित और पेशेवर बनाने का रास्ता खोला है। मखाने की खेती के माध्यम से रोजगार के अवसरों का सृजन, कृषि क्षेत्र के विकास और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है। इस क्षेत्र में और निवेश, नवाचार और सरकारी प्रोत्साहनों की आवश्यकता है, ताकि मखाने का उत्पादन और निर्यात बढ़ सके और भारतीय किसान और श्रमिक अधिक समृद्ध हो सकें।
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