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Captain Anshuman Singh Parents Demand : सेना के नियम एनओके पर उठे सवाल , दिवंगत कैप्टन अंशुमान के माता-पिता की मांग

Captain Anshuman Singh Parents Demand : सेना के नियम एनओके पर उठे सवाल , दिवंगत कैप्टन अंशुमान के माता-पिता की मांग

भारतीय सेना में निकटतम परिजन नीति (एनओके) को लेकर एक बार फिर से सवाल उठे हैं। इस बार सवाल उठाए हैं दिवंगत Captain Anshuman Singh के माता-पिता ने, जो चाहते हैं कि इस नीति में बदलाव किया जाए ताकि सैनिक की मौत होने पर वित्तीय सहायता और सम्मान सिर्फ पत्नी को ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार को मिलें।

कैप्टन अंशुमान सिंह की वीरता :

पिछले साल जुलाई में सियाचिन में अपने साथियों को बचाते हुए Captain Anshuman Singh ने अपनी जान गंवा दी थी। उनकी वीरता और साहस के लिए उन्हें मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार पांच जुलाई को राष्ट्रपति भवन में उनकी मां मंजू सिंह और पत्नी स्मृति ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से स्वीकार किया। कीर्ति चक्र वीरता के लिए दिए जाने वाले पुरस्कारों में दूसरा सर्वोच्च श्रेणी का पुरस्कार है।

एनओके नीति में बदलाव की मांग :

Captain Anshuman Singh के पिता, जो खुद भी सेना से रिटायर्ड हैं, ने इस नीति में संशोधन की मांग की है। उनका कहना है कि कीर्ति चक्र को उनके घर नहीं लाया जा सका और उनकी बहू स्मृति ने इसे अपने पास रखा है, जिसे वे ठीक से देख भी नहीं पाए। उन्होंने निकटतम परिजन नीति में बदलाव की मांग करते हुए कहा, “एक ऐसा व्यापक और सर्वमान्य नियम बनना चाहिए जो दोनों परिवारों को प्रतिकूल और अनुकूल स्थिति में सर्वमान्य हो। किसी के अधिकारों और कर्तव्यों का हनन नहीं होना चाहिए।”

निकटतम परिजन नीति (एनओके) :

निकटतम परिजन (एनओके) नीति के तहत सैन्य कर्मी की मौत होने पर उनके परिवार के सदस्यों को वित्तीय सहायता और सम्मान दिए जाते हैं। एनओके शब्द का मतलब किसी व्यक्ति के पति/पत्नी, निकटतम रिश्तेदार, परिवार के सदस्य या कानूनी अभिभावक से है। हर सर्विस पर्सन को सर्विस के दौरान अपने निकटतम परिजन को घोषित करना पड़ता है। शादी की स्थिति में यह आमतौर पर जीवनसाथी हो जाता है, लेकिन अगर सैन्यकर्मी के पास पर्याप्त कारण हैं तो वह अपना एनओके बदल सकता है।

विभिन्न अधिकारियों की राय :

लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) नितिन कोहली कहते हैं कि हर सर्विस पर्सन को अपने एनओके को खुद तय करना पड़ता है। यदि किसी की शादी नहीं हुई है, तो आमतौर पर उसके माता-पिता निकटतम परिजन के तौर पर दर्ज होते हैं। नाम ना लिखने के अनुरोध पर एक सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल ने बताया कि एनओके की जानकारी भरते वक्त सैनिक को अपने जीवनसाथी के साथ-साथ माता-पिता को भी एनओके में शामिल करने का विकल्प होता है।

रिटायर्ड मेजर जनरल जीडी बख़्शी के अनुसार, सर्विस के दौरान कोई भी जवान एडजुटेंट जनरल ब्रांच के जरिए अपनी वसीयत बना सकता है, जिसमें वह तय कर सकता है कि उसके न रहने पर उसकी संपत्ति किस आधार पर बांटी जाए।

वह कहते हैं , सेना में व्यक्ति को पार्ट-2 ऑर्डर भरना पड़ता है, तभी उसकी शादी रिकॉर्ड पर आती है. उसे इस फॉर्म में भरना होता है कि उसकी शादी कब, कहां और किसके साथ हुई, जिसके लिए कुछ दस्तावेज़ भी लगते हैं.

राज्य सरकारों के निर्णय :

कई राज्य सरकारों ने इस तरह के मामलों को देखते हुए अपनी नीतियों में बदलाव किया है। मध्य प्रदेश सरकार ने हाल ही में फैसला लिया कि अगर कोई सुरक्षाकर्मी शहीद होता है, तो राज्य सरकार की तरफ से मिलने वाली आर्थिक मदद को पत्नी और माता-पिता के बीच बराबर बांटा जाएगा। उत्तर प्रदेश ने 2020 में फैसला किया कि शहीद होने वाले सैनिक को 50 लाख रुपये की अनुग्रह राशि दी जाएगी, जिसमें से 35 लाख रुपये पत्नी को और 15 लाख रुपये माता-पिता को दिए जाएंगे।

हरियाणा सरकार ने 2017 में पत्नी को मिलने वाली 100 प्रतिशत अनुग्रह राशि को 30 प्रतिशत माता-पिता और 70 प्रतिशत पत्नी और बच्चों में बांटने का फैसला किया।लेफ्टिनेंट जनरल कहते हैं, “अगर कोई महिला दूसरी शादी कर लेती है तो कीर्ति चक्र माता-पिता के पास चला जाता है.

कैप्टन अंशुमान सिंह की कहानी :

19 जुलाई 2023 की सुबह सियाचिन ग्लेशियर में भारतीय सेना के कई टेंटों में आग लगी थी। इस आग में कई जवान फंस गए थे। अपनी जान की परवाह किए बिना कैप्टन अंशुमान अपने साथियों को बचाने के लिए आगे आए। उन्होंने 4 से 5 जवानों को सुरक्षित बचा लिया, लेकिन वे खुद बुरी तरह झुलस गए और उन्हें नहीं बचाया जा सका।

कैप्टन अंशुमान की शादी इस हादसे से पांच महीने पहले 10 फरवरी को स्मृति से हुई थी, जो पेशे से इंजीनियर हैं। स्मृति के मुताबिक उनकी मुलाकात अंशुमान से इंजीनियरिंग कॉलेज में हुई थी। यहां से मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने सेना की मेडिकल कोर को ज्वाइन किया।

निष्कर्ष

Captain Anshuman Singh के माता-पिता की मांग इस बात को दर्शाती है कि एनओके नीति में सुधार की जरूरत है ताकि परिवार के सभी सदस्य सैनिक की मृत्यु के बाद उचित सम्मान और वित्तीय सहायता प्राप्त कर सकें। यह मामला सेना और सरकार दोनों के लिए विचारणीय है कि वे इस नीति में कैसे सुधार कर सकते हैं ताकि सभी संबंधित पक्षों को न्याय मिल सके।

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