COVID-19 वैक्सीन और कोरोना से मौतों के मामले अलग-अलग नहीं…’, सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजे पर केंद्र को दिया ये निर्देश
COVID-19 महामारी के दौरान करोड़ों लोगों को वैक्सीन लगाई गई, लेकिन इसके साइड इफेक्ट्स और दुर्लभ मामलों में होने वाली मौतों को लेकर लंबे समय से बहस जारी है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को स्पष्ट निर्देश दिया है कि COVID-19 टीकाकरण के प्रतिकूल प्रभावों को ध्यान में रखते हुए मुआवजा नीति तैयार करने पर विचार किया जाए।
क्या है मामला?
25 फरवरी 2025 को जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या COVID-19 वैक्सीन के प्रतिकूल प्रभावों से प्रभावित परिवारों के लिए कोई मुआवजा योजना है? केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) ऐश्वर्या भाटी ने अदालत को सूचित किया कि ऐसी कोई नीति वर्तमान में लागू नहीं है।
बेंच ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि ” COVID-19 महामारी और उससे जुड़ी वैक्सीन का संबंध स्पष्ट है। दोनों को अलग नहीं देखा जा सकता।” अदालत ने तर्क दिया कि पूरे टीकाकरण अभियान को महामारी से निपटने के लिए लागू किया गया था, इसलिए इससे होने वाले प्रतिकूल प्रभावों को सरकार की जिम्मेदारी से अलग नहीं किया जा सकता।
कोर्ट में सरकार की दलील
सरकार की ओर से दलील दी गई कि COVID-19 को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया गया था, लेकिन वैक्सीन अभियान एक चिकित्सा प्रोटोकॉल का हिस्सा था। इसलिए, आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत इसके साइड इफेक्ट्स से प्रभावित लोगों को मुआवजा देने की कोई नीति नहीं बनाई गई।
सुप्रीम कोर्ट ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि एडवर्स इवेंट फॉलोइंग इम्यूनाइजेशन (AEFI) तंत्र के जरिए यह आकलन किया जा सकता है कि किसी व्यक्ति की मौत या गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं सीधे तौर पर वैक्सीन से जुड़ी हैं या नहीं।
केरल हाईकोर्ट का पुराना फैसला और केंद्र की अपील
मामले की जड़ केरल हाईकोर्ट के 2023 के एक फैसले से जुड़ी है। सईदा के.ए. नामक महिला, जिनके पति की कथित तौर पर कोविड वैक्सीन के दुष्प्रभावों के कारण मृत्यु हो गई थी, ने मुआवजे की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
केरल हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को निर्देश दिया था कि वह COVID-19 टीकाकरण के बाद होने वाली मौतों के लिए मुआवजा नीति तैयार करे। इसके खिलाफ केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर फिलहाल रोक लगा दी, लेकिन सरकार से तीन सप्ताह में जवाब मांगा है।
क्या होगा अगला कदम?
अदालत ने इस मामले में अगली सुनवाई 18 मार्च 2025 को तय की है। केंद्र सरकार को तब तक यह स्पष्ट करना होगा कि क्या वह वैक्सीन साइड इफेक्ट्स से प्रभावित परिवारों को मुआवजा देने की कोई नीति बनाएगी या नहीं।
सरकार की जिम्मेदारी बनाम पीड़ितों का हक
सुप्रीम कोर्ट का यह रुख पीड़ित परिवारों के लिए राहत भरा साबित हो सकता है, लेकिन यह सरकार के लिए भी एक महत्वपूर्ण फैसला होगा। यदि मुआवजा नीति बनती है, तो सरकार को उन मामलों की जांच करनी होगी जहां वैक्सीन के दुष्प्रभावों की वजह से जान गई या गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हुईं।
निष्कर्ष
यह मामला केवल कानूनी लड़ाई नहीं, बल्कि एक मानवीय मुद्दा भी है। जब सरकार ने वैक्सीन को आवश्यक रूप से लागू किया था, तो उसके प्रभावों की जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए। अगर COVID-19 से हुई मौतों को आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत मुआवजा मिला, तो वैक्सीन के प्रतिकूल प्रभावों को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या केंद्र सरकार पीड़ित परिवारों को राहत देने के लिए ठोस नीति बनाएगी या नहीं? अगली सुनवाई पर इस मुद्दे पर बड़ा फैसला आ सकता है।
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