Govardhan Parvat : तिल-तिल घटता धरोहर या प्रलय का संकेत? सच्चाई जान हो जाएगी टेंशन
गोवर्धन पर्वत (Govardhan Parvat) , जिसे श्रद्धालु ‘गिरिराज जी’ के नाम से भी जानते हैं, उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित एक पवित्र स्थल है। यह पर्वत हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक गहरा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखता है। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर ब्रजवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाया था। परंतु हाल के वर्षों में यह पर्वत तिल-तिल घटने की खबरों से एक नया रहस्य जुड़ गया है। आइए, इस पर्वत से जुड़ी मान्यताओं, रहस्यों और इसके घटने के पीछे की सच्चाई को विस्तार से जानें।
गोवर्धन पर्वत (Govardhan Parvat) का धार्मिक महत्व
श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित गोवर्धन लीला:
द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण ने देखा कि ब्रजवासी हर वर्ष इंद्रदेव की पूजा कर रहे हैं, तो उन्होंने उन्हें गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का परामर्श दिया। उन्होंने ब्रजवासियों को समझाया कि यह पर्वत उन्हें जीवन में अत्यावश्यक वस्त्र, आहार, जल और पशुओं के लिए चरागाह प्रदान करता है। इससे क्रोधित होकर इंद्रदेव ने मूसलधार बारिश और तूफान भेज दिया, जिससे पूरा ब्रज डूबने लगा। तब श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रजवासियों और उनके पशुओं को सुरक्षा प्रदान की। इस घटना के बाद से गोवर्धन पर्वत भगवान श्रीकृष्ण की अद्वितीय लीला का प्रतीक बन गया।
गोवर्धन परिक्रमा:
हर वर्ष लाखों श्रद्धालु गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं, जिसे बेहद पुण्यकारी माना जाता है। यह परिक्रमा 21 किलोमीटर लंबी होती है, और इस दौरान श्रद्धालु गिरिराज जी के जयकारे लगाते हुए अपनी भक्ति को प्रकट करते हैं। मान्यता है कि इस परिक्रमा से सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति मिलती है और भगवान कृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
तिल-तिल घटता गोवर्धन पर्वत: क्या है रहस्य?
एक यूट्यूबर जब गोवर्धन पर्वत की वास्तविकता को जानने के लिए वहाँ पहुँचा, तो उसे कई रहस्यमय जानकारियाँ मिलीं। पर्वत के ऊपर जाने पर उसकी मुलाकात एक पुजारी बाबा से हुई, जिन्होंने बताया कि गोवर्धन पर्वत अब हर दिन तिल-तिल घट रहा है। यह सुनकर यूट्यूबर चकित रह गया और इस रहस्य को और गहराई से जानने का प्रयास किया।
गोवर्धन पर्वत (Govardhan Parvat) का प्राचीन आकार और आधुनिक स्थिति:
पुराणों के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था, तब इसकी ऊंचाई लगभग 64 कोस (192 किलोमीटर) थी। परंतु आज यह पर्वत केवल 25 से 30 मीटर की ऊंचाई तक सिमट गया है। वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टिकोण से यह पर्वत लगातार घट रहा है, जिससे भक्तों और शोधकर्ताओं में चिंता की लहर है।
ऋषि का श्राप और प्रलय की भविष्यवाणी:
इस तिल-तिल घटने के पीछे कई कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें से एक प्रमुख कथा यह है कि एक प्राचीन ऋषि ने गोवर्धन पर्वत को श्राप दिया था कि वह हर दिन तिल-तिल घटेगा। मान्यता है कि जिस दिन यह पर्वत पूरी तरह से जमीन में समा जाएगा, उस दिन प्रलय आ जाएगी। इस कथा को सुनकर गोवर्धन पर्वत की घटती ऊँचाई को लेकर लोगों के बीच एक भय भी व्याप्त है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
जहाँ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गोवर्धन पर्वत का घटना एक श्राप या प्रलय का संकेत माना जाता है, वहीं वैज्ञानिकों के अनुसार यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया हो सकती है। यह पर्वत चट्टानों और मिट्टी से बना है, जो समय के साथ क्षरण (इरोशन) का शिकार हो रही हैं। हवा, पानी और अन्य प्राकृतिक तत्वों के प्रभाव से इस पर्वत का धीरे-धीरे घिस जाना स्वाभाविक प्रक्रिया है।
क्षरण की प्रक्रिया:
चट्टानों का क्षरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें प्राकृतिक तत्वों के कारण चट्टानें टूटने और घिसने लगती हैं। इस प्रक्रिया में बारिश, हवा और तापमान का विशेष योगदान होता है। गोवर्धन पर्वत भी इस प्राकृतिक प्रक्रिया का हिस्सा है, और इसके पत्थरों के क्षरण के कारण यह पर्वत तिल-तिल घट रहा है।
गोवर्धन पर्वत से जुड़ी अन्य धार्मिक मान्यताएँ
गोवर्धन पर्वत न केवल श्रीकृष्ण की लीला के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इससे जुड़ी कई और धार्मिक मान्यताएँ भी हैं। कहते हैं कि इस पर्वत पर आज भी भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की उपस्थिति के साक्ष्य मिलते हैं। पर्वत के एक हिस्से में श्रीकृष्ण और राधा के पैरों के निशान पाए जाते हैं, जहाँ भक्त पूजा-अर्चना करने जाते हैं।
इसके अलावा, पर्वत के कुछ हिस्सों में गायों और उनके बछड़ों के खुरों के निशान भी देखने को मिलते हैं। इसे भगवान श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं के साक्ष्य के रूप में देखा जाता है। इन धार्मिक मान्यताओं और साक्ष्यों के कारण यह पर्वत भक्तों के लिए एक अत्यंत पवित्र स्थल बन चुका है।
गोवर्धन पर्वत (Govardhan Parvat) के संरक्षण की आवश्यकता
गोवर्धन पर्वत न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह एक ऐतिहासिक धरोहर भी है। इसे बचाने और संरक्षित करने की आवश्यकता है। अगर यह पर्वत तिल-तिल घटता रहा, तो आने वाली पीढ़ियाँ इस महत्वपूर्ण स्थल को केवल कहानियों और पुस्तकों में ही जान पाएंगी।
गोवर्धन पर्वत के संरक्षण के लिए सरकार और स्थानीय प्रशासन को ठोस कदम उठाने चाहिए। इस पर्वत पर हो रहे प्राकृतिक क्षरण को रोकने के लिए विशेषज्ञों की सहायता से योजना बनानी चाहिए। इसके साथ ही, भक्तों और पर्यटकों को भी पर्वत के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए ताकि इसकी पवित्रता और महत्ता बनी रहे।
गोवर्धन पर्वत, जो कभी ब्रजवासियों की सुरक्षा का प्रतीक था, आज तिल-तिल घट रहा है। इसके घटने की वजह चाहे धार्मिक मान्यता हो या प्राकृतिक प्रक्रिया, इस पर्वत का संरक्षण समय की माँग है। यह पर्वत न केवल श्रीकृष्ण की दिव्य लीला का प्रतीक है, बल्कि भारतीय संस्कृति और धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। इसके प्रति श्रद्धा और जागरूकता दोनों ही आवश्यक हैं ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस धरोहर से जुड़ी रह सकें।
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