Hanging Till Death : फांसी देने के वक्त आखिरी बार जल्लाद कैदी से क्या कहता है? Fact जानकर चौंक जाएंगे आप
Hanging Till Death : फांसी देने के वक्त आखिरी बार जल्लाद कैदी से क्या कहता है? Fact जानकर चौंक जाएंगे आप
Hanging Till Death : मृत्युदंड एक ऐसी सजा है जिसे किसी अपराधी को उसकी गंभीर और अमानवीय गतिविधियों के लिए दी जाती है। दुनिया भर में मौत की सजा देने के अलग-अलग तरीके और प्रक्रियाएं अपनाई जाती हैं। भारत में मौत की सजा के तहत फांसी का प्रावधान है, और यह प्रक्रिया न केवल कानूनी और प्रशासनिक पहलुओं से भरी होती है, बल्कि इसमें कई भावनात्मक और सांस्कृतिक तत्व भी जुड़े होते हैं।
भारत में फांसी (Hanging Till Death) प्रक्रिया: एक दृष्टि
भारत में मृत्युदंड के लिए फांसी का प्रावधान काफी पुराना है। यह प्रक्रिया न्यायालय के आदेश, जेल प्रशासन और जल्लाद की भूमिका के अंतर्गत पूरी होती है। आइए इस प्रक्रिया को विस्तार से समझते हैं:
- फांसी का आदेश जब किसी अपराधी को मौत की सजा दी जाती है, तो यह आदेश देश की सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित किया जाता है। अपराधी को सभी कानूनी विकल्पों का अधिकार दिया जाता है, जैसे उच्च न्यायालय में अपील करना, राष्ट्रपति से दया याचिका करना आदि।
- फांसी की तारीख और समय दया याचिका खारिज होने के बाद फांसी की तारीख और समय तय किया जाता है। यह प्रक्रिया सुबह के समय की जाती है, क्योंकि यह दिन की शुरुआत में जेल प्रशासन को तनावमुक्त रहने में मदद करता है।
- फांसी की तैयारी फांसी का फंदा विशेष प्रकार की मजबूत रस्सी से बनाया जाता है। इसे पहले से तैयार किया जाता है और कई बार जांचा जाता है ताकि किसी भी तकनीकी त्रुटि से बचा जा सके।
- अंतिम रस्में कैदी को उसकी अंतिम इच्छा पूछी जाती है। उसे धार्मिक ग्रंथ पढ़ने, प्रार्थना करने, या किसी खास व्यक्ति से मिलने का अवसर दिया जाता है। इसके बाद उसे काले कपड़े पहनाए जाते हैं और उसके चेहरे को ढका जाता है।
जल्लाद की भूमिका और उसका मानसिक बोझ
जल्लाद का काम बेहद संवेदनशील और तनावपूर्ण होता है। उसे समाज के नियमों और कानूनों का पालन करते हुए अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना होता है। हालांकि, यह जिम्मेदारी मानसिक और भावनात्मक रूप से भारी होती है।
भारत में फांसी (Hanging Till Death) देने से पहले जल्लाद द्वारा किए गए कार्य और कहे गए शब्द एक गहरी सांस्कृतिक और मानवतावादी भावना को दर्शाते हैं।
- जल्लाद द्वारा कहे गए शब्द फांसी देने से पहले जल्लाद अपराधी के कान में यह कहता है:
“मुझे माफ कर दो। हिंदू भाई को राम-राम, मुस्लिम को सलाम। हम क्या कर सकते हैं, हम तो हैं हुकुम के गुलाम।”
इस कथन के पीछे एक गहरी भावना छिपी होती है। यह जल्लाद की ओर से एक सांत्वना है, जिसमें वह अपराधी को यह संदेश देना चाहता है कि वह केवल अपने कर्तव्य का पालन कर रहा है। इसमें जल्लाद की अपनी व्यक्तिगत भावना या द्वेष का कोई स्थान नहीं होता।
- इस कथन का भावनात्मक पहलू “मुझे माफ कर दो” कहना यह दर्शाता है कि जल्लाद को भी अपने काम के प्रति अपराधबोध हो सकता है। यह उसे एक इंसान के रूप में प्रस्तुत करता है, जो परिस्थितियों का गुलाम है। इसके अलावा, धर्म-निरपेक्ष अभिवादन यह दर्शाता है कि मौत के समय सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान का भाव रखा जाता है।
फांसी का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ
भारत में फांसी का प्रावधान ब्रिटिश काल से चला आ रहा है। ब्रिटिश शासन के दौरान कई स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी दी गई, जैसे भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव आदि। आजादी के बाद, यह प्रावधान विशेष रूप से गंभीर अपराधों के लिए रखा गया।
- प्रसिद्ध फांसी के मामले
- नरभक्षी वीरप्पन: कुख्यात डाकू वीरप्पन को पकड़ने के बाद उसके सहयोगियों को फांसी दी गई।
- निर्भया कांड: इस मामले में दोषियों को फांसी देने की प्रक्रिया ने देशभर में न्याय के प्रति विश्वास बढ़ाया।
- सांस्कृतिक प्रभाव भारत में मृत्युदंड न केवल न्याय का प्रतीक है, बल्कि यह सामाजिक और नैतिक मूल्यों को भी प्रतिबिंबित करता है।
दुनिया भर में फांसी की प्रक्रिया
दुनिया के अलग-अलग देशों में मृत्युदंड के तरीके भिन्न होते हैं।
- फांसी का प्रावधान वाले देश
- भारत, मलेशिया, बोत्सवाना, तंजानिया जैसे देशों में फांसी का प्रावधान है।
- गोली मारने की सजा
- यमन, टोगो, थाईलैंड, इंडोनेशिया जैसे देशों में दोषियों को गोली मारकर मौत दी जाती है।
- अन्य तरीके
- अमेरिका के कुछ राज्यों में इलेक्ट्रिक चेयर या लीथल इंजेक्शन का इस्तेमाल होता है।
फांसी (Hanging Till Death) देने की प्रक्रिया पर चर्चा
फांसी की प्रक्रिया पर सामाजिक और कानूनी बहस लंबे समय से होती आ रही है। क्या यह प्रक्रिया मानवीय है? क्या इसे समाप्त किया जाना चाहिए? ये प्रश्न हर समय प्रासंगिक रहते हैं।भारत में फांसी देना न केवल एक कानूनी प्रक्रिया है, बल्कि इसमें भावनात्मक, सांस्कृतिक और नैतिक तत्व भी शामिल होते हैं। जल्लाद द्वारा कहे गए अंतिम शब्द इस प्रक्रिया को और अधिक मानवीय बनाते हैं। “मुझे माफ कर दो” कहने के पीछे जल्लाद की अपनी भावनाएं, अपराधी के प्रति संवेदनशीलता और न्यायिक व्यवस्था का पालन छिपा होता है।
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