Hindu Festival: हिंदू धर्म में ऐसे कई तीज-त्योहार हैं, जोकि प्रकृति से जुड़े हैं और पर्यावरण का महत्व दर्शाते हुए इसके संरक्षण का भी संदेश देते हैं.
Hindu Festival : हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) मनाया जाता है, ताकि लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़े और इसके संरक्षण की जिम्मेदारी को समझा जा सके। लेकिन यह बात जानकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि हिंदू धर्म ने हजारों वर्षों पहले से ही प्राकृतिक तत्वों और पर्यावरण संरक्षण को जीवन का अभिन्न हिस्सा बना लिया था। हिंदू धर्म में धरती, जल, अग्नि, वायु और आकाश – इन पांच महाभूतों को पूजनीय माना गया है।
ऋतुओं और त्योहारों का प्रकृति से गहरा संबंध (Hindu Festival Relation)
सनातन धर्म में छह ऋतुएं मानी गई हैं – वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर। इन ऋतुओं से संबंधित त्योहारों का आयोजन केवल धार्मिक कारणों से नहीं होता, बल्कि ये मौसम परिवर्तन की सूचना, कृषि चक्र, और प्राकृतिक संतुलन से जुड़ा होता है।
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वसंत ऋतु में वसंत पंचमी,
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ग्रीष्म ऋतु में गुरु पूर्णिमा,
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वर्षा ऋतु में सावन का महीना,
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शरद ऋतु में नवरात्रि,
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हेमंत ऋतु में दीवाली और
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शिशिर ऋतु में मकर संक्रांति और महाशिवरात्रि मनाई जाती है।
नवसंवत्सर और संक्रांति पर्व: प्रकृति में नवजीवन का प्रतीक
चैत्र माह से जब सूर्य की गति में परिवर्तन होता है, तब नवसंवत्सर यानी हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है। भारत के विभिन्न राज्यों में इसे अलग-अलग नामों से मनाया जाता है जैसे:
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गुड़ी पड़वा (महाराष्ट्र),
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उगादि (आंध्रप्रदेश),
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चेटी चंड (सिंधु),
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नवरोज (कश्मीर)।
ये त्योहार सिर्फ नववर्ष की घोषणा नहीं करते, बल्कि प्रकृति में नवजीवन की शुरुआत का प्रतीक होते हैं।
प्रकृति पूजा: छठ पूजा और अन्य त्योहार
छठ पूजा को पर्यावरण से जुड़ा सबसे प्रमुख पर्व माना जाता है। यह पर्व सूर्य देव, जल और छठी मईया को समर्पित होता है। इसमें:
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नदी के तट पर पूजा,
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व्रत,
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और सूर्य को अर्घ्य देना जैसे कार्यों के माध्यम से
प्राकृतिक तत्वों की उपासना होती है।
बसंत पंचमी के दिन पीले सरसों के फूलों से सजी धरती, आम के पेड़ों पर बौर और तितलियों की चहचहाहट से जो सौंदर्य उपजता है, वो पर्यावरण की अद्भुत छटा को दर्शाता है।
होलिका दहन से लेकर गोवर्धन पूजा तक: प्रकृति के विभिन्न रूपों की आराधना
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होलिका दहन जहां बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, वहीं यह आग और पेड़-पौधों की शक्ति को भी सम्मान देता है।
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गोवर्धन पूजा में गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है, जो कि प्रकृति संरक्षण और पशु पालन का प्रतीक है।
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गंगा दशहरा पर गंगा नदी के अवतरण का उत्सव मनाया जाता है।
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आंवला नवमी, वट सावित्री, तुलसी विवाह, शीतलाष्टमी और अश्वत्थोपनयन व्रत जैसे त्योहारों में वृक्ष पूजा की जाती है, जो वन संरक्षण और जैव विविधता के लिए प्रेरणादायक हैं।
हवन और यज्ञ: Hindu Festival में वायुमंडल की शुद्धि का उपाय
हिंदू धर्म में हवन और यज्ञ का विशेष स्थान है। धार्मिक दृष्टि से भले ही ये पूजा का हिस्सा हों, लेकिन इनके वैज्ञानिक लाभ भी हैं। हवन में जिन सात प्रकार के पेड़ों – आम, पीपल, बरगद, ढाक, जांटी, जामुन और शमी – की लकड़ियों का उपयोग होता है, वे वातावरण को शुद्ध करने में सहायक हैं।
यज्ञ में उपयोग होने वाली सामग्री जैसे:
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घी,
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सुगंधित जड़ी-बूटियां,
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हवन समिधा,
का जलने से न केवल वातावरण शुद्ध होता है बल्कि इससे रोग निवारण और मानसिक शांति भी प्राप्त होती है।
पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा: हिंदू धर्म का संदेश
आज जहां ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण, वृक्ष कटाई और जल संकट जैसे मुद्दे पूरी दुनिया के लिए खतरा बन चुके हैं, वहीं हिंदू धर्म की परंपराएं हमें प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देती हैं। सनातन परंपरा में प्रकृति को माता का दर्जा दिया गया है, जिससे हमें सिखाया जाता है कि प्रकृति के साथ समरसता से जीवन जीना ही मानव का धर्म है।
निष्कर्ष:
Hindu Festival न केवल धार्मिक आस्था के प्रतीक हैं, बल्कि इनमें छुपा है प्रकृति से प्रेम, पर्यावरण के संरक्षण और जीव-जगत के कल्याण का गूढ़ संदेश। हमें चाहिए कि हम इन त्योहारों के आध्यात्मिक और वैज्ञानिक पहलुओं को समझते हुए पर्यावरण की रक्षा के लिए आगे आएं, ताकि आने वाली पीढ़ियों को भी शुद्ध, सुंदर और समृद्ध प्रकृति का उपहार मिल सके।
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