International Boxer Nikita Chand 2024 : गरीबी से लेकर गोल्ड तक , हार न मानने वाली निकिता चंद की प्रेरणादायक यात्रा
International Boxer Nikita Chand 2024 : गरीबी से लेकर गोल्ड तक , हार न मानने वाली निकिता चंद की प्रेरणादायक यात्रा
Nikita Chand Success : प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती, न ही परिस्थितियों की। यही बात उत्तराखंड के सीमांत जनपद पिथौरागढ़ की बेटी निकिता चंद पर सटीक बैठती है। निकिता ने गरीबी और संघर्षों को मात देते हुए अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी में सफलता के झंडे गाड़ दिए हैं। 18 साल की उम्र में चार स्वर्ण और एक रजत पदक जीतकर उन्होंने दुनिया को अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया है। आज उन्हें ‘गोल्डन गर्ल’ के नाम से जाना जाता है। उनकी इस यात्रा में परिवार की कठिनाइयों, कड़ी मेहनत और संघर्ष का बड़ा योगदान है। आइए जानते हैं निकिता की इस असाधारण सफर की कहानी और उनके भविष्य के लक्ष्यों के बारे में।
निकिता चंद ( Nikita Chand) का प्रारंभिक जीवन :
निकिता चंद का जन्म पिथौरागढ़ के मूनाकोट विकासखंड के बड़ालू गांव में हुआ। उनके पिता सुरेश चंद और माता दीपा चंद एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं, जिनका मुख्य आजीविका का साधन दूध बेचने पर आधारित है। आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर होने के बावजूद निकिता के माता-पिता ने कभी उसकी प्रतिभा को दबने नहीं दिया। जब निकिता सिर्फ नौ साल की थीं, तब वह अपने फूफा बिजेंद्र मल्ल के साथ रहने चली गईं। यहीं से उनके जीवन की दिशा बदल गई।
मुक्केबाजी की शुरुआत :
निकिता के फूफा बिजेंद्र मल्ल 1987 में नेशनल बॉक्सिंग चैंपियन रह चुके हैं और आज भी वह अपने गांव के युवाओं को बॉक्सिंग सिखाते हैं। निकिता ने अपने फूफा को मुक्केबाजों को ट्रेनिंग देते देखा, तो उनके मन में भी बॉक्सिंग के प्रति रुचि जागी। उनके फूफा के अनुभव और मार्गदर्शन ने उन्हें अपनी दिशा और लक्ष्य तय करने में मदद की।
2016 में, निकिता ने बाकायदा अपने फूफा से बॉक्सिंग की ट्रेनिंग लेना शुरू किया। उनकी मेहनत और समर्पण का परिणाम 2019 में तब देखने को मिला, जब उन्होंने नेशनल स्कूल गेम्स में कांस्य पदक जीता। यह उनकी पहली बड़ी उपलब्धि थी, जिसने उन्हें और भी प्रेरित किया।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर सफलता :
निकिता के सफर में सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब उन्होंने 2021 में सोनीपत में आयोजित जूनियर नेशनल बॉक्सिंग में स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद उसी साल दुबई में हुई जूनियर एशियन चैंपियनशिप के 60 किलोग्राम भार वर्ग में स्वर्ण पदक जीतकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई।
निकिता की इस सफलता की यात्रा यहीं नहीं रुकी। 2022 में उन्होंने जॉर्डन में और 2023 में कजाकिस्तान में आयोजित जूनियर एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप में भी स्वर्ण पदक जीते। 2023 में मोंटेनेग्रो में हुए वर्ल्ड कप में भी निकिता ने स्वर्ण पदक के साथ-साथ ‘बेस्ट बॉक्सर’ का खिताब जीता। इसके अलावा, इसी वर्ष एशियन चैंपियनशिप में उन्होंने रजत पदक जीतकर अपनी शानदार फॉर्म को बरकरार रखा।
गरीबी को मात देने वाली मेहनत :
निकिता चंद की सफलता सिर्फ उनके कौशल का नतीजा नहीं है, बल्कि उनकी जबरदस्त मेहनत, समर्पण और फूफा के सहयोग का भी बड़ा हाथ है। उनकी गरीबी कभी उनकी राह में रोड़ा नहीं बन सकी। उनके कोच और फूफा बिजेंद्र मल्ल का कहना है कि निकिता बचपन से ही बहुत मेहनती और समर्पित रही हैं। उनके अनुसार, “निकिता की मेहनत और लगन देखकर मैं हमेशा यही कहता हूं कि यह लड़की एक दिन बड़े-बड़े मुकाम हासिल करेगी।”
निकिता चंद अकेली नहीं हैं जो अपने परिवार का नाम रोशन कर रही हैं। उनकी छोटी बहन खुशी चंद और छोटे भाई नीरज चंद भी बॉक्सिंग की दुनिया में अपनी पहचान बना रहे हैं। खुशी ने 2023 में सब जूनियर नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता और इसी वर्ष अबूधाबी में हुई एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप में कांस्य पदक अपने नाम किया। वहीं, नीरज चंद ने भी राज्य स्तर पर बॉक्सिंग में स्वर्ण पदक जीतकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है।
भविष्य के लक्ष्य :
निकिता के फूफा और कोच बिजेंद्र मल्ल के मार्गदर्शन में अब निकिता का अगला लक्ष्य सीनियर एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप और कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीतना है। इसके अलावा, निकिता की नजरें अब 2028 में होने वाले ओलंपिक खेलों पर भी टिकी हैं, जहां वह अपने देश के लिए स्वर्ण पदक जीतने का सपना देख रही हैं। इसके लिए वह दिन-रात मेहनत कर रही हैं और अपनी फॉर्म को बरकरार रखने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही हैं।
प्रेरणादायक सफर :
निकिता चंद (Nikita Chand) की यह यात्रा सिर्फ उनकी नहीं है, बल्कि उन तमाम लड़कियों के लिए प्रेरणा है जो कठिनाइयों के बावजूद अपने सपनों को पूरा करने की हिम्मत करती हैं। निकिता ने यह साबित कर दिया है कि अगर मेहनत, समर्पण और सही मार्गदर्शन हो, तो कोई भी बाधा आपको सफलता पाने से नहीं रोक सकती।
उनके कोच बिजेंद्र मल्ल का कहना है, “सीमांत जनपद पिथौरागढ़ में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है, मगर पारिवारिक आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण कई प्रतिभाएं दम तोड़ देती हैं। ऐसे में निकिता जैसी लड़कियों को आगे बढ़ाने और तराशने की बहुत जरूरत है।”
निकिता चंद (Nikita Chand) का संदेश :
निकिता चंद (Nikita Chand) का कहना है, “मैंने कभी अपने हालातों को अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। गरीबी ने मुझे मजबूत बनाया और मेरे अंदर एक जिद पैदा की कि मुझे कुछ बड़ा करना है। मैं चाहती हूं कि मेरे जैसे और भी लोग आगे आएं और अपने सपनों को साकार करें। मेहनत ही एकमात्र रास्ता है जो आपको मंजिल तक पहुंचा सकता है।”
निकिता चंद की कहानी हमें यह सिखाती है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयां क्यों न हों, अगर आप अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ हैं और मेहनत करने को तैयार हैं, तो सफलता अवश्य मिलेगी। निकिता की यह यात्रा भारत की नई पीढ़ी के लिए एक प्रेरणास्रोत है, जो न केवल खेलों में बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में अपने सपनों को पूरा करना चाहते हैं।
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