Living Planet Report 2024 : भारत के आहार मॉडल की चर्चा क्यों? 2050 तक अनाज उगाने के लिए धरती का .84 भाग ही काफी
Living Planet Report 2024 : भारत के आहार मॉडल की चर्चा क्यों? 2050 तक अनाज उगाने के लिए धरती का .84 भाग ही काफी
Living Planet Report : आज जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक संसाधनों की कमी और पर्यावरणीय क्षरण की गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है, ऐसे में आहार और कृषि प्रणाली में सुधार बेहद आवश्यक हो गया है। वैश्विक स्तर पर खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के लिए भारत के आहार मॉडल की चर्चा की जा रही है, जिसे अगर व्यापक रूप से अपनाया जाए, तो 2050 तक खाद्यान्न उत्पादन के लिए हमें पृथ्वी के सिर्फ .84 भाग की ही जरूरत होगी।
यह दावा ‘वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर’ (WWF) की Living Planet Report 2024′ में किया गया है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर दुनिया भारत की तरह शाकाहारी आहार को प्रमुखता दे, तो कृषि के लिए जंगलों की कटाई और प्राकृतिक संसाधनों की अंधाधुंध खपत को रोका जा सकता है।
पर्यावरण पर बढ़ता खतरा :
हमारी पृथ्वी गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों से जूझ रही है। बढ़ती जनसंख्या, औद्योगीकरण और अवैज्ञानिक कृषि विधियों के कारण जंगलों का तेजी से कटना, नदियों का सूखना और वन्य जीवों की घटती संख्या चिंता का विषय बन चुके हैं। ‘लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2024’ के अनुसार, पिछले 50 सालों में दुनियाभर के जंगली जानवरों की संख्या में 73% की गिरावट आई है। यह गिरावट सिर्फ पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित नहीं करती, बल्कि मानव जीवन को भी खतरे में डालती है।
कृषि प्रणाली और वन्य जीवों पर प्रभाव :
खेती के विस्तार के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों की कटाई की जा रही है, जिससे जानवरों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, जंगलों में रहने वाले बड़े फल खाने वाले जानवरों की संख्या कम हो रही है, जिसके परिणामस्वरूप बड़े बीज वाले पेड़ भी घटते जा रहे हैं। यह स्थिति कार्बन स्टोरेज पर भी नकारात्मक असर डालती है। कृषि विस्तार के कारण न केवल जंगलों का क्षरण हो रहा है, बल्कि पानी की खपत भी अत्यधिक हो रही है।
जल संसाधनों की कमी :
विश्वभर में 70% मीठे पानी का उपयोग कृषि के लिए किया जाता है। जलवायु परिवर्तन और अत्यधिक पानी की खपत के कारण कई स्थानों पर भूमिगत जलस्तर घटता जा रहा है। नदियों और झीलों में पानी की कमी हो रही है, जिससे इन जलस्रोतों में रहने वाले जीव-जंतु विलुप्त हो रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका के पश्चिमी हिस्सों में 80% पानी का उपयोग खेती के लिए किया जाता है, जिसमें से 55% पानी तो सिर्फ पशु चारे के उत्पादन में ही चला जाता है।
भारत का शाकाहारी आहार मॉडल : एक समाधान
‘Living Planet Report 2024’ में भारत के शाकाहारी आहार मॉडल की विशेष सराहना की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि पूरी दुनिया भारत की तरह शाकाहारी भोजन को अपनाए, तो 2050 तक हमें पूरी पृथ्वी की नहीं, बल्कि केवल .84 भाग की ही आवश्यकता होगी। भारत का आहार मॉडल न केवल पौष्टिक और संतुलित है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण में भी मददगार साबित हो सकता है।
भारत में National Millet Campaign के तहत मिलेट्स (मोटा अनाज) के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। मिलेट्स न केवल सेहत के लिए फायदेमंद हैं, बल्कि वे जलवायु परिवर्तन के प्रति भी अधिक सहनशील होते हैं। इनका उत्पादन कम पानी में भी संभव है, जिससे जल संसाधनों की बचत होती है। मिलेट्स के उपयोग से न केवल खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है, बल्कि यह किसानों के लिए भी लाभकारी है।
आंध्र प्रदेश की प्राकृतिक कृषि प्रणाली :
भारत के आंध्र प्रदेश में अपनाई गई प्राकृतिक कृषि प्रणाली ने दिखाया है कि यदि हम प्रकृति का ख्याल रखते हुए कृषि करें, तो पर्यावरण और किसान दोनों को लाभ मिल सकता है। आंध्र प्रदेश कम्युनिटी मैनेज्ड नेचुरल फार्मिंग (APCNF) प्रोजेक्ट दुनिया का सबसे बड़ा प्राकृतिक कृषि प्रोजेक्ट है, जिसमें 630,000 किसान शामिल हैं। इस परियोजना के तहत किसानों को पर्यावरण के अनुकूल खेती के तरीके सिखाए जा रहे हैं, जिससे न केवल किसानों की आय बढ़ी है, बल्कि जल संसाधनों की भी बचत हो रही है।
इस परियोजना के अंतर्गत फसलों की पैदावार औसतन 11% बढ़ गई है और किसानों की आय में 49% की वृद्धि हुई है। यह दिखाता है कि यदि कृषि पद्धतियों को पर्यावरण के अनुरूप ढाला जाए, तो न केवल कृषि उत्पादकता में सुधार होगा, बल्कि पर्यावरणीय संकटों से भी निपटा जा सकेगा।
भविष्य की जरूरत : आहार और कृषि प्रणाली में सुधार
Living Planet Report में कहा गया है कि खाद्य उत्पादन प्रणाली में सुधार करना आज की सबसे बड़ी जरूरत है। फसलों की पैदावार, पशुपालन, मछली पालन और अन्य कृषि गतिविधियों को इस तरह से प्रबंधित करना होगा कि वे पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाएं। इसके लिए वैश्विक स्तर पर आहार संबंधी आदतों में बदलाव की जरूरत है।
विशेष रूप से अमीर देशों में शाकाहारी आहार को बढ़ावा देना जरूरी है, क्योंकि मांसाहार के लिए बड़े पैमाने पर संसाधनों की खपत होती है। साथ ही, वर्तमान में विश्वभर में 30-40% खाना बर्बाद हो जाता है। अगर हम इस बर्बादी को रोकने में सफल होते हैं, तो न केवल खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों की भी बचत होगी।
भोजन की बर्बादी : एक गंभीर समस्या
आज जितना खाना हम उगाते हैं, उसका एक बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाता है। यह बर्बादी न केवल भोजन की कमी को बढ़ाती है, बल्कि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण क्षरण को भी बढ़ावा देती है। भोजन की बर्बादी के कारण पानी, ऊर्जा और अन्य संसाधनों का दुरुपयोग होता है, जिससे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ता है।निष्कर्ष: वैश्विक खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण में भारत की भूमिका
2050 तक पृथ्वी की बढ़ती जनसंख्या को भोजन उपलब्ध कराने के लिए कृषि और आहार प्रणाली में व्यापक बदलाव की आवश्यकता है। भारत का शाकाहारी आहार मॉडल और पर्यावरण के अनुकूल कृषि प्रणाली न केवल खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी मददगार साबित हो सकते हैं। यदि वैश्विक स्तर पर भारत की तरह शाकाहारी आहार और प्राकृतिक कृषि को अपनाया जाता है, तो धरती के सीमित संसाधनों को बचाया जा सकता है।
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