Madhabi Puri Buch : FIR दर्ज नहीं होगी, हाईकोर्ट की रोक, शेयर Fraud के आरोप लगे थे, स्पेशल कोर्ट ने केस दर्ज करने का आदेश दिया था
Madhabi Puri Buch : FIR दर्ज नहीं होगी, हाईकोर्ट की रोक, शेयर Fraud के आरोप लगे थे, स्पेशल कोर्ट ने केस दर्ज करने का आदेश दिया था
भारतीय शेयर बाजार के रेगुलेटर सेबी (SEBI) की पूर्व चेयरपर्सन Madhabi Puri Buch पर शेयर लिस्टिंग से जुड़े फ्रॉड के आरोप लगे थे। इस मामले में स्पेशल कोर्ट ने एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था, लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी है। यह मामला निवेशकों के हितों, वित्तीय पारदर्शिता और न्यायिक प्रक्रिया के बीच संतुलन बनाए रखने को लेकर चर्चा में है। आइए विस्तार से समझते हैं कि यह मामला क्या है, इसमें कौन-कौन शामिल हैं, और हाईकोर्ट का फैसला क्यों अहम है।
क्या है पूरा मामला?
Madhabi Puri Buch समेत छह अधिकारियों पर शेयर लिस्टिंग में वित्तीय अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। यह आरोप मुंबई के एक पत्रकार सपन श्रीवास्तव ने लगाए थे, जिन्होंने दावा किया कि 1994 में उन्होंने और उनके परिवार ने कैल्स रिफाइनरीज लिमिटेड के शेयरों में निवेश किया था, लेकिन सेबी और बीएसई (BSE) द्वारा नियमों की अनदेखी के कारण उन्हें भारी नुकसान हुआ। उन्होंने आरोप लगाया कि कंपनी को गलत तरीके से लिस्टिंग की अनुमति दी गई और निवेशकों के हितों की रक्षा नहीं की गई।
स्पेशल कोर्ट का आदेश
1 मार्च 2025 को मुंबई के एक स्पेशल एंटी-करप्शन कोर्ट ने माधबी पुरी बुच समेत छह अधिकारियों पर एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था। यह आदेश स्पेशल जज एसई बांगर ने दिया था और एंटी-करप्शन ब्यूरो (ACB) को 30 दिनों के भीतर स्टेटस रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था।
बॉम्बे हाईकोर्ट का दखल और रोक
Madhabi Puri Buch ने इस आदेश को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी। जस्टिस एसजी डिगे ने सुनवाई करते हुए कहा कि शिकायतकर्ता ने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा है और ऐसा प्रतीत होता है कि स्पेशल कोर्ट ने विस्तृत तथ्यों की जांच किए बिना यह आदेश पारित कर दिया। इसलिए, इस आदेश पर फिलहाल रोक लगा दी गई है।
शिकायतकर्ता के तीन मुख्य तर्क:
- सेबी के अधिकारी अपने वैधानिक कर्तव्य को निभाने में असफल रहे।
- बाजार में हेराफेरी होने दी गई, जिससे निवेशकों को भारी नुकसान हुआ।
- ऐसी कंपनी को लिस्टिंग की अनुमति दी गई जो नियमों का पालन नहीं कर रही थी।
सेबी के तीन मुख्य तर्क:
- माधबी पुरी बुच और तीन अन्य होलटाइम मेंबर्स उस समय (1994) अपने पदों पर नहीं थे।
- कोर्ट ने सेबी को तथ्यों को पेश करने का उचित अवसर नहीं दिया।
- शिकायतकर्ता पहले भी ऐसे कई केस कर चुके हैं, जिन्हें अदालत ने खारिज किया था।
कौन-कौन शामिल हैं इस मामले में?
स्पेशल कोर्ट द्वारा एफआईआर दर्ज करने का आदेश जिन अधिकारियों के खिलाफ दिया गया था, उनमें शामिल हैं:
- माधबी पुरी बुच (पूर्व सेबी चेयरपर्सन)
- अश्वनी भाटिया (सेबी के होलटाइम मेंबर)
- अनंत नारायण (सेबी के होलटाइम मेंबर)
- कमलेश चंद्र वार्ष्णेय (सेबी के होलटाइम मेंबर)
- प्रमोद अग्रवाल (बीएसई के चेयरमैन)
- सुंदररमन राममूर्ति (बीएसई के सीईओ)
Madhabi Puri Buch का प्रोफाइल
Madhabi Puri Buch ने 1989 में ICICI बैंक से अपना करियर शुरू किया था। वे 2007 से 2009 तक ICICI बैंक में एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर के पद पर रहीं। बाद में उन्होंने ICICI सिक्योरिटीज में बतौर मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ काम किया। 2011 में वे सिंगापुर चली गईं और ग्रेटर पैसिफिक कैपिटल में कार्यरत रहीं।
फरवरी 2022 में, भारत सरकार ने उन्हें सेबी का चेयरपर्सन नियुक्त किया। वे इस पद पर तीन साल तक रहीं और 28 फरवरी 2025 को सेवानिवृत्त हुईं। उनकी जगह तुहिन कांत पांडे को सेबी का नया प्रमुख नियुक्त किया गया है।
Madhabi Puri Buch पर पहले भी लगे थे आरोप
- हिंडनबर्ग रिसर्च ने आरोप लगाया था कि माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच की अडाणी ग्रुप से जुड़ी एक ऑफशोर कंपनी में हिस्सेदारी है।
- कांग्रेस पार्टी ने भी उन पर आरोप लगाए थे कि वे सेबी चीफ के कार्यकाल के दौरान ICICI बैंक समेत तीन अलग-अलग स्थानों से सैलरी ले रही थीं।
निष्कर्ष
यह मामला सेबी की भूमिका, वित्तीय पारदर्शिता और न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता से जुड़ा है। बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा स्पेशल कोर्ट के आदेश पर रोक लगाना यह दर्शाता है कि आरोपों की निष्पक्ष जांच जरूरी है। इस फैसले से निवेशकों और नियामक संस्थाओं के बीच विश्वास बनाए रखने की आवश्यकता पर भी बल दिया गया है। आगे की सुनवाई में यह साफ होगा कि Madhabi Puri Buch और अन्य अधिकारियों पर लगे आरोप कितने ठोस हैं और क्या उन पर कानूनी कार्रवाई होगी या नहीं।
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