Organic Farming : कौन अपने जैविक आंदोलन से खेती को बना रहा है बेहतर? गांवों की अर्थव्यवस्था हो रही मजबूत!
Organic Farming in India: पतंजलि आयुर्वेद का दावा है कि उसका जैविक आंदोलन भारतीय खेती को बदल रहा है. साथ ही किसानों को आत्मनिर्भर बनाकर मिट्टी और पर्यावरण को स्वस्थ कर रहा है.
Patanjali Organic Farming : भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहां की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा खेती पर आधारित है। लेकिन बीते कुछ दशकों में रासायनिक खाद और कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग ने खेती को जितना उत्पादन के लिहाज से बढ़ावा दिया, उतना ही नुकसान मिट्टी, जल, पर्यावरण और किसानों के स्वास्थ्य को पहुंचाया। इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए भारत में Organic Farming यानी जैविक खेती की ओर एक मजबूत रुझान देखने को मिल रहा है।
इस आंदोलन में एक बड़ा नाम है – पतंजलि आयुर्वेद। बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के नेतृत्व में पतंजलि ने जो जैविक खेती का अभियान चलाया है, उसने भारतीय खेती को नया रूप देना शुरू कर दिया है। आइए विस्तार से जानते हैं कि Organic Farming in India के क्षेत्र में पतंजलि कैसे एक क्रांतिकारी भूमिका निभा रहा है।
जैविक खेती क्या है? (What is Organic Farming?)
Organic Farming एक ऐसी कृषि पद्धति है जिसमें रासायनिक खाद, कीटनाशक या संश्लेषित हार्मोन के बिना प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके खेती की जाती है। इसमें गोबर की खाद, हरी खाद, जीवामृत, पंचगव्य आदि का प्रयोग कर मिट्टी को उपजाऊ बनाए रखा जाता है।
जैविक खेती के फायदे:
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मिट्टी की उर्वरता लंबे समय तक बनी रहती है
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पर्यावरण सुरक्षित रहता है
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फसलें पोषण से भरपूर होती हैं
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किसानों को बाजार में बेहतर दाम मिलते हैं
पतंजलि का जैविक आंदोलन: एक नई शुरुआत
पतंजलि आयुर्वेद का दावा है कि वह भारत में जैविक खेती को एक बड़े आंदोलन का रूप दे रहा है। इस आंदोलन के केंद्र में किसान, मिट्टी और पर्यावरण है। पतंजलि का उद्देश्य है भारतीय खेती को आत्मनिर्भर, टिकाऊ और स्वदेशी ज्ञान आधारित बनाना।
बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की पहल
बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने जिस सोच के साथ पतंजलि की नींव रखी, उसमें कृषि, आयुर्वेद, योग और पर्यावरण का गहरा जुड़ाव है। पतंजलि का मानना है कि जब तक खेती सुरक्षित नहीं होगी, तब तक स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था दोनों पर खतरा बना रहेगा। इसलिए जैविक खेती को बढ़ावा देकर वह किसानों और उपभोक्ताओं दोनों की भलाई का रास्ता खोल रहे हैं।
किसान समृद्धि कार्यक्रम: खेती में आत्मनिर्भरता की ओर
पतंजलि किसान समृद्धि कार्यक्रम के तहत किसानों को जैविक खेती की ट्रेनिंग दी जाती है। इसमें कई अहम पहलुओं पर ध्यान दिया जाता है:
1. फसल चक्र और विविधता
एक ही फसल को बार-बार उगाने से मिट्टी की गुणवत्ता घट जाती है। पतंजलि किसानों को सिखाता है कि वे फसल चक्र अपनाएं यानी अलग-अलग मौसम में अलग फसलें लगाएं ताकि मिट्टी को पोषक तत्व मिलते रहें।
2. हरी खाद और कंपोस्ट
हरी खाद यानी ऐसे पौधे जिन्हें जमीन में जोतकर मिट्टी को उर्वर बनाया जा सके, जैसे – सनई, धैंचा, मूँग। पतंजलि सिखाता है कि कैसे प्राकृतिक तरीके से खाद तैयार की जाए और खेत की उर्वरता बनाए रखी जाए।
3. जैविक खाद और उत्पाद
पतंजलि ने कई ऐसे उत्पाद विकसित किए हैं जो मिट्टी को सुधारने और फसल को पोषण देने में मदद करते हैं। जैसे:
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जीवामृत
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गोमूत्र आधारित कीटनाशक
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पंचगव्य खाद
इन सबका प्रयोग करने से फसलें रोगमुक्त और अधिक पौष्टिक होती हैं।
डिजिटल सशक्तिकरण: ऐप से जुड़ रहा है किसान
Organic Farming in India को बढ़ावा देने के लिए पतंजलि तकनीक का भी भरपूर इस्तेमाल कर रहा है।
1. अनुबंध खेती (Contract Farming)
पतंजलि किसानों से सीधे अनुबंध करता है। किसान जो भी फसल जैविक रूप से उगाते हैं, कंपनी उसे सीधे खरीदती है। इससे किसान को:
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बाजार की चिंता नहीं होती
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फसल का सही दाम मिलता है
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बिचौलियों से छुटकारा मिलता है
2. डिजिटल ऐप की भूमिका
पतंजलि ने किसानों के लिए एक डिजिटल ऐप भी विकसित किया है, जिससे उन्हें यह जानकारी मिलती है:
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कौन सी फसल कब लगानी है
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जैविक विधियों का सही तरीका
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मौसम की जानकारी
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मंडी रेट और मांग के अनुसार सलाह
यह ऐप किसानों को शिक्षित करने और सही दिशा देने में बेहद मददगार साबित हो रहा है।
पर्यावरण संरक्षण में जैविक खेती की भूमिका
जैविक खेती सिर्फ मिट्टी और फसल के लिए ही नहीं, पूरे पर्यावरण के लिए फायदेमंद है। पतंजलि का कहना है कि उनका आंदोलन भारत को इको-फ्रेंडली खेती की दिशा में आगे ले जा रहा है।
जैविक खेती के पर्यावरणीय फायदे:
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रासायनिक खाद और कीटनाशक के न इस्तेमाल से पानी शुद्ध रहता है
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मिट्टी की संरचना और जैव विविधता बनी रहती है
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कीट-पतंगों और पक्षियों की प्रजातियां सुरक्षित रहती हैं
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कार्बन फुटप्रिंट कम होता है, जिससे जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद मिलती है
महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रहा है जैविक आंदोलन
पतंजलि का प्रयास केवल पुरुष किसानों तक सीमित नहीं है। कंपनी महिलाओं को भी औषधीय पौधों और जैविक खेती में प्रशिक्षण देकर आर्थिक रूप से सशक्त बना रही है। गांव की महिलाएं अब न सिर्फ खेती कर रही हैं बल्कि आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों की प्रोसेसिंग और मार्केटिंग में भी सक्रिय हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान
जैविक खेती अब धीरे-धीरे एक व्यवसायिक मॉडल का रूप ले रही है। पतंजलि के इस प्रयास से गांवों में रोजगार के नए अवसर बन रहे हैं और ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है।
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निर्यात की संभावना: जैविक उत्पादों की मांग दुनिया भर में बढ़ रही है। पतंजलि जैविक उत्पादों को इंटरनेशनल मार्केट में भी उतारने की तैयारी कर रहा है।
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घरेलू बाज़ार में मूल्यवर्धन: लोग अब हेल्दी फूड की ओर झुक रहे हैं, जिससे जैविक फसलों का मूल्य लगातार बढ़ रहा है।
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स्थायी कृषि: जैविक खेती टिकाऊ है, इससे खेती की लागत घटती है और मुनाफा बढ़ता है।
पतंजलि मॉडल: खेती का भविष्य?
कई कृषि विशेषज्ञ मानते हैं कि पतंजलि का यह जैविक खेती मॉडल आने वाले वर्षों में देशभर में लागू किया जा सकता है। इसके फायदे व्यापक हैं:
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किसानों को आत्मनिर्भर बनाना
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खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना
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जलवायु संकट से निपटना
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ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करना
निष्कर्ष : क्या भारत बनेगा जैविक खेती का वैश्विक नेता?
Organic Farming in India का भविष्य उज्ज्वल है, और पतंजलि जैसे संगठनों के प्रयास से यह संभव होता दिख रहा है कि भारत आने वाले वर्षों में जैविक कृषि का वैश्विक नेतृत्वकर्ता बन सकता है।
पतंजलि का दावा है कि उसका जैविक आंदोलन न केवल खेती को, बल्कि समाज और संस्कृति को भी पुनर्जीवित कर रहा है। आज जरूरत है कि अन्य संस्थाएं, सरकारी एजेंसियां और किसान इस मॉडल को अपनाएं और देश को एक स्वस्थ, समृद्ध और टिकाऊ खेती की ओर ले जाएं।
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