Patna Lathi Charge : शिक्षक अभ्यर्थियों पर बर्बरता का प्रदर्शन, लोकतंत्र पर सवाल
बिहार की राजधानी पटना में सोमवार को Lathi Charge का जो घटनाक्रम सामने आया, उसने पूरे राज्य में हलचल मचा दी। बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) के दफ्तर के बाहर प्रदर्शन करने जा रहे शिक्षक अभ्यर्थियों पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज (Lathi Charge )किए जाने की घटना ने हर किसी को हैरान कर दिया। ये शिक्षक अभ्यर्थी टीआरई-3 (TRE-3) परीक्षा से जुड़े हुए थे और उनकी प्रमुख मांग ‘वन कैंडिडेट वन रिजल्ट’ (एक अभ्यर्थी, एक परिणाम) की नीति को लागू करने की थी। उनका मानना था कि इस नीति से परीक्षा प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहेगी और सभी अभ्यर्थियों को न्याय मिलेगा।
घटना का विस्तृत विवरण
सोमवार की सुबह पटना की सड़कों पर एक अलग ही दृश्य देखने को मिला। हजारों की संख्या में शिक्षक अभ्यर्थी BPSC के दफ्तर की ओर बढ़ रहे थे। वे अपनी मांगों को लेकर शांतिपूर्वक प्रदर्शन करना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया। इस दौरान पुलिस और अभ्यर्थियों के बीच कहासुनी होने लगी, जो धीरे-धीरे बढ़ती गई और स्थिति ने हिंसक रूप ले लिया। पुलिस ने लाठियां चलानी शुरू कर दीं और अभ्यर्थियों पर बर्बरता से हमला किया। उन्हें दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया, जोकि लोकतांत्रिक देश में अस्वीकार्य है।
इस लाठीचार्ज (Lathi Charge ) में कई अभ्यर्थी गंभीर रूप से घायल हो गए। उन्हें स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। इस घटना ने पूरे राज्य में रोष पैदा कर दिया है। अभ्यर्थियों का कहना है कि उनकी शांतिपूर्ण मांगों को दबाने के लिए पुलिस ने अत्यधिक बल प्रयोग किया, जोकि लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
अभ्यर्थियों की मांगें और उनके संघर्ष की कहानी
शिक्षक अभ्यर्थियों की प्रमुख मांग थी कि TRE-3 परीक्षा में ‘ वन कैंडिडेट वन रिजल्ट ‘ की नीति लागू की जाए। इस नीति का मतलब है कि प्रत्येक अभ्यर्थी का केवल एक ही परिणाम जारी किया जाए, जिससे परीक्षा प्रक्रिया में कोई धोखाधड़ी या अनियमितता न हो। अभ्यर्थियों को आशंका थी कि यदि एक से अधिक परिणाम जारी किए जाते हैं, तो इससे भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी हो सकती है, जिससे योग्य अभ्यर्थियों को उनका हक नहीं मिल पाएगा।
इसके अलावा, उनकी यह भी मांग थी कि परिणाम घोषित होने से पहले सभी अभ्यर्थियों की काउंसलिंग की जाए, ताकि सभी के दस्तावेज़ों की सही तरीके से जांच हो सके। वे यह भी चाहते थे कि इस प्रक्रिया में किसी बाहरी एजेंसी, जैसे बेलट्रॉन, को शामिल न किया जाए। उनका मानना था कि बेलट्रॉन जैसी एजेंसियों की भागीदारी से भर्ती प्रक्रिया में और भी गड़बड़ी हो सकती है।
प्रदर्शनकारियों में से एक, दिलीप कुमार ने बताया, “हम यहां शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांग रखने आए थे। लेकिन पुलिस ने हम पर बर्बरता दिखाई। हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि परीक्षा प्रक्रिया में पारदर्शिता हो और हमें न्याय मिले। लेकिन सरकार और प्रशासन ने हमारी आवाज को दबाने की कोशिश की।”
लोकतंत्र पर सवाल : क्या यह लोकतंत्र की हत्या है ?
इस घटना ने बिहार के राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो खुद छात्र आंदोलनों से उभरे हुए नेता हैं, के शासन में इस प्रकार की घटना होना लोगों को सोचने पर मजबूर कर रहा है। क्या यह लोकतंत्र की हत्या है? क्या बिहार में अब छात्रों और युवाओं को अपनी आवाज उठाने का हक नहीं है?
लोकतंत्र में हर नागरिक को अपनी बात रखने का हक होता है। लेकिन जब उसी लोकतंत्र में लोगों की आवाज को दबाने के लिए लाठियों का इस्तेमाल किया जाता है, तो यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या लोकतंत्र सही दिशा में जा रहा है? बिहार में छात्रों और युवाओं का एक बड़ा वर्ग इस Lathi Charge की घटना से आहत है और वे चाहते हैं कि सरकार उनकी मांगों को सुने और उनके साथ न्याय करे।
काउंसलिंग की प्रक्रिया और उसमें आ रही समस्याएं :
इधर बिहार में इन दिनों सक्षमता पास शिक्षकों की काउंसलिंग की प्रक्रिया चल रही है। इस प्रक्रिया में कई तरह की अनियमितताएं सामने आई हैं। पटना में डीआरसीसी (District Resource Centre for Counselling) कार्यालय में आठ दिनों से काउंसलिंग का काम चल रहा है। अब तक कुल 1920 शिक्षकों की काउंसलिंग हो चुकी है, जिनमें से कई के कागजातों में गड़बड़ी पाई गई है।
जहानाबाद के डीआरसीसी कार्यालय में भी शनिवार को 49 शिक्षकों के कागजात संदेहास्पद पाए गए हैं। इन शिक्षकों के कागजातों की जांच की जा रही है और इस जांच के बाद ही यह पता चल पाएगा कि कहीं इसमें भी कोई फर्जीवाड़ा तो नहीं हुआ है। बिहार में शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया पर इस समय कड़ी नजर रखी जा रही है, ताकि किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार को रोका जा सके।
प्रशासन की प्रतिक्रिया: क्या यह कदम आवश्यक था ?
इस पूरे मामले पर प्रशासन की प्रतिक्रिया भी विचारणीय है। पुलिस का कहना है कि प्रदर्शनकारियों ने जबरदस्ती आगे बढ़ने की कोशिश की, जिसके चलते उन्हें लाठीचार्ज (Lathi Charge ) करना पड़ा। पुलिस के अनुसार, यह कदम इसलिए उठाया गया ताकि कानून व्यवस्था बनी रहे और किसी प्रकार का उपद्रव न हो। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह लाठीचार्ज वास्तव में आवश्यक था ? क्या प्रशासन ने कोई और रास्ता नहीं खोजा ?
इस घटना के बाद राजनीतिक दलों ने भी अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं। विपक्ष ने सरकार पर आरोप लगाया है कि वह लोकतांत्रिक अधिकारों का दमन कर रही है। वहीं, सत्तारूढ़ दल ने इसे कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए उठाया गया आवश्यक कदम बताया है।
आगे का रास्ता: क्या सरकार अभ्यर्थियों की मांग सुनेगी ?
इस घटना के बाद बिहार की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था में एक नई बहस शुरू हो गई है। क्या सरकार अभ्यर्थियों की मांगों पर विचार करेगी ? क्या लोकतंत्र में छात्रों और युवाओं को अपनी बात रखने का अधिकार मिलेगा ? यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस मामले में क्या कदम उठाती है।
बिहार के शिक्षित युवाओं का एक बड़ा वर्ग इस समय सरकार की ओर देख रहा है। वे चाहते हैं कि उनकी मांगों को सुना जाए और उनके साथ न्याय किया जाए। यदि सरकार इन युवाओं की मांगों को अनसुना करती है, तो यह घटना राज्य की राजनीति और सामाजिक व्यवस्था पर गहरा असर डाल सकती है।
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