Site icon Khabar Har Taraf

Pind Daan In Gaya : पितरों की मोक्ष प्राप्ति का पवित्र स्थल , जानें गया में पिंडदान का महत्त्व और इसके पीछे की पौराणिक कथा

Pind Daan In Gaya : पितरों की मोक्ष प्राप्ति का पवित्र स्थल , जानें गया में पिंडदान का महत्त्व और इसके पीछे की पौराणिक कथा

Pind Daan 2004 : पितृ पक्ष सनातन धर्म में एक विशेष समय होता है, जिसमें लोग अपने पितरों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए पिंडदान और तर्पण किया जाता है। इस प्रक्रिया का मुख्य केंद्र बिहार के गया शहर में है। यहां पिंडदान की परंपरा अनादिकाल से चली आ रही है, और धार्मिक मान्यता के अनुसार, गया में किया गया पिंडदान पितरों को मोक्ष दिलाने में सबसे प्रभावी होता है। आइए जानते हैं कि आखिर क्यों गया को पिंडदान के लिए सर्वोत्तम माना जाता है और इसकी शुरुआत कैसे हुई।

गया में पिंडदान (Pind Daan) का पौराणिक महत्व :

गया में पिंडदान की परंपरा से जुड़ी एक पौराणिक कथा है, जिसमें असुर गयासुर की भक्ति और श्रीहरि विष्णु के आशीर्वाद का वर्णन किया गया है। गयासुर एक अत्यंत भक्तिपूर्ण असुर था, जिसने अपनी कठोर तपस्या से भगवान विष्णु को प्रसन्न किया। उसकी तपस्या इतनी प्रभावशाली थी कि उसे सभी देवी-देवताओं से वरदान प्राप्त हुआ कि उसके दर्शन मात्र से लोग अपने पापों से मुक्त हो जाएंगे और स्वर्ग की प्राप्ति करेंगे। इसके बाद स्वर्ग में भीड़ बढ़ने लगी, जिससे देवी-देवता चिंतित हो गए।

गयासुर का त्याग और गया का महत्व :

देवी-देवताओं ने गयासुर से यह निवेदन किया कि वह किसी पवित्र स्थान पर यज्ञ करने की अनुमति दे। गयासुर ने गया में भूमि पर लेटकर अपना शरीर यज्ञ के लिए अर्पित कर दिया। देवी-देवताओं ने उसके शरीर पर यज्ञ किया, और उसकी भक्ति देखकर भगवान विष्णु स्वयं उसके शरीर पर विराजमान हो गए। प्रभु ने गयासुर से वर मांगने को कहा, तो गयासुर ने निवेदन किया कि भगवान विष्णु अनंत काल तक इस स्थान पर विराजमान रहें और जो भी व्यक्ति यहां सच्चे मन से अपने पितरों का पिंडदान करेगा, उसके पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होगी।

भगवान विष्णु ने गयासुर की इस इच्छा को स्वीकार किया, और तभी से गया को पिंडदान के लिए पवित्र स्थल माना जाने लगा। गयासुर के शरीर का वह हिस्सा पत्थर में बदल गया और यही स्थान ‘गया’ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यह माना जाता है कि यहां पिंडदान करने से पितृ दोषों का निवारण होता है और पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

भगवान श्रीराम का पिंडदान :

गया में पिंडदान की परंपरा त्रेता युग से भी जुड़ी हुई है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने भी अपने पिता राजा दशरथ के लिए फल्गु नदी के तट पर पिंडदान किया था। इस घटना के बाद से गया को पितरों की आत्मा की शांति और मुक्ति का सबसे प्रमुख स्थान माना जाने लगा। तब से लेकर आज तक, लाखों श्रद्धालु अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए यहां पिंडदान करने आते हैं।

गया में पिंडदान की पौराणिक कथा

गया जी में पिंडदान करने की परंपरा एक प्राचीन पौराणिक कथा से जुड़ी हुई है। कथा के अनुसार, गयासुर नामक एक असुर ने भगवान विष्णु से वरदान प्राप्त किया था कि उसके शरीर पर यज्ञ करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होगा। गयासुर की यह भक्ति और तपस्या इतनी प्रबल थी कि देवताओं ने उसे यह वरदान दे दिया। इसके बाद से यह स्थान पितरों की मुक्ति के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।

इस कथा के अनुसार, गयासुर ने अपनी तपस्या से पितरों की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया। यह स्थान इतना पवित्र है कि यहां पिंडदान करने से 108 कुलों और 7 पीढ़ियों तक का उद्धार हो जाता है। यही कारण है कि हिंदू धर्म में गया जी को पितरों की मुक्ति का प्रमुख स्थान माना गया है।

गया में पिंडदान (Pind Daan) करने का महत्व :

गया में पिंडदान का धार्मिक महत्व इतना अधिक है कि इसे करने के लिए सालभर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। पितृ पक्ष के दौरान गया में विशेष रूप से पिंडदान की धूम रहती है। यह समय पितरों की आत्मा की शांति और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अत्यधिक शुभ माना जाता है। हिंदू धर्म में यह विश्वास है कि यदि गया में पिंडदान किया जाता है, तो पितरों को सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है, और इससे साधक को पितरों का आशीर्वाद मिलता है।

पितृ पक्ष और गया में पिंडदान (Pind Daan) की परंपरा :

पितृ पक्ष की अवधि 16 दिनों की होती है, जो भाद्रपद माह की पूर्णिमा से शुरू होती है और अश्विन माह की अमावस्या को समाप्त होती है। इस साल पितृ पक्ष 18 सितंबर से 2 अक्टूबर तक चलेगा। इस दौरान शुभ और मांगलिक कार्य करना वर्जित होता है, क्योंकि इसे पितरों का समय माना जाता है। इस समय को पितरों की उपासना और तर्पण के लिए समर्पित किया जाता है। पितृ दोष से मुक्ति के लिए गया में पिंडदान करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।

पिंडदान की विधि और तर्पण :

पिंडदान की विधि अत्यंत सरल होती है, लेकिन इसे सच्चे मन से और शास्त्रीय विधि-विधान से करना आवश्यक होता है। सबसे पहले फल्गु नदी के तट पर पिंड बनाए जाते हैं, जो चावल, जौ, तिल और आटे से बनाए जाते हैं। इसके बाद विधिपूर्वक इन पिंडों को पितरों को अर्पित किया जाता है। इसके साथ ही तर्पण का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें पवित्र जल के साथ पितरों का आह्वान कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है।

गया में पिंडदान (Pind Daan) के साथ अन्य धार्मिक स्थल :

गया केवल पिंडदान के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है, बल्कि यहां कई अन्य धार्मिक स्थल भी हैं, जो आध्यात्मिक महत्व रखते हैं। विष्णुपद मंदिर यहां का सबसे प्रमुख मंदिर है, जहां भगवान विष्णु के चरण चिन्हों की पूजा की जाती है। इसके अलावा, फल्गु नदी, अक्षय वट और प्रेतशिला जैसे स्थल भी पवित्र माने जाते हैं, जहां पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

गया में पिंडदान की परंपरा अत्यंत प्राचीन और महत्वपूर्ण है। यहां पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और परिवार को उनका आशीर्वाद मिलता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, गया में पिंडदान करना सभी पितृ दोषों का निवारण करने का सबसे प्रभावी उपाय है।

To know about the news GOAT Movie Collection , refer to the link below –

https://khabarhartaraf.com/goat-worldwide-collection/

To know more about this news , refer to the link below –

https://youtube.com/shorts/hVBDfWUppxU?si=QxlPW-_2yfAV_lRC

 

Exit mobile version