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Rajya Sabha Member Sudha Murty : 74 वर्ष की आयु में भी सीखने की कोई सीमा नहीं, जीवन में निरंतरता, मेहनत और संतुलन की महत्वपूर्णता”

Rajya Sabha Member Sudha Murty : 74 वर्ष की आयु में भी सीखने की कोई सीमा नहीं, जीवन में निरंतरता, मेहनत और संतुलन की महत्वपूर्णता”

सीखने की कोई उम्र नहीं : राज्यसभा सदस्य सुधा मूर्ति (Sudha Murty) की प्रेरणादायक बातें

सुधा मूर्ति (Sudha Murty) , जो अपनी सादगी और ज्ञान के लिए जानी जाती हैं, ने फिर से यह साबित किया कि उम्र सिर्फ एक संख्या है और सीखने की कोई सीमा नहीं होती। राज्यसभा सदस्य बनने के बाद, 74 साल की उम्र में, उन्होंने एक नया दृष्टिकोण अपनाया और यह दिखाया कि हर उम्र में कुछ नया सीखा जा सकता है। इंदौर में फ़िक्की फ़्लो द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों और सीखने के महत्व पर चर्चा की। इस कार्यक्रम का आयोजन इंदौर के डेली कॉलेज ऑडिटोरियम में हुआ था, जहां सुधा मूर्ति ने अपनी यात्रा, लेखन, परिवार और जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर अपनी राय रखी।

74 की उम्र में राज्यसभा सदस्य बनना : सीखने की नई दिशा

सुधा मूर्ति (Sudha Murty) ने कहा, “ 74 साल की उम्र में राज्यसभा में शामिल होकर मैं टेबल के दूसरी ओर से चीजों को देख रही हूँ। यह एक नया अनुभव है और मुझे इस नए सफर में बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है।” उनका यह कहना उनके जीवन के प्रति उनके जिज्ञासु और समर्पित दृष्टिकोण को दिखाता है। उन्होंने यह भी कहा कि नई चीज़ें सीखने के लिए धैर्य, कड़ी मेहनत और निरंतरता बनाए रखना जरूरी है।

उनकी बातों से यह स्पष्ट हुआ कि उम्र के किसी भी पड़ाव पर सीखने की प्रक्रिया रुकी नहीं होनी चाहिए। उनका मानना है कि जब तक हम ज़िंदा हैं, तब तक सीखना और आगे बढ़ना जरूरी है।

लेखन की प्रेरणा : माँ की सख्ती से शुरू हुआ लेखन सफर

सुधा मूर्ति ने अपने लेखन के सफर की शुरुआत के बारे में बताया कि यह सब उनकी माँ की सख्ती से शुरू हुआ था। उन्होंने कहा, “मेरी माँ मुझे स्कूल के दिनों में हर वीकेंड पर कुछ पंक्तियाँ लिखने को कहती थीं। अगर मैं ऐसा नहीं करती तो वह मुझे डिनर से वंचित करने की धमकी देतीं। एक साल तक इस तरह जबरन लिखवाने के बाद, मुझे खुद इसमें आनंद आने लगा और वहीं से मेरी लेखन की यात्रा शुरू हुई।”

हालांकि, सुधा मूर्ति ने 50 साल की उम्र तक केवल कन्नड़ में ही लेखन किया। उन्होंने कहा, “मैंने 46 किताबें लिखीं और इन 44 वर्षों में मैंने यह सब अपनी मातृभाषा कन्नड़ में ही लिखा। उसके बाद मैंने अंग्रेज़ी में लिखना शुरू किया।” उनकी कहानी से यह साफ झलकता है कि लेखन का शौक कभी भी किसी के जीवन में शुरू हो सकता है, चाहे वह किसी भी उम्र में क्यों न हो।

काम और परिवार के बीच संतुलन : मातृत्व की महत्वपूर्ण भूमिका

सुधा मूर्ति ने कामकाजी महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश दिया। उन्होंने कहा कि माँ और बच्चे के बीच का संबंध खासकर 14 साल की उम्र तक बहुत महत्वपूर्ण होता है। उन्होंने कहा, “एक माँ को 14 साल की उम्र तक बच्चे के साथ जितना समय संभव हो, बिताना चाहिए। उसके बाद बच्चे अपने निर्णय खुद लेने लगते हैं।”

सुधा मूर्ति ने माताओं को यह भी सलाह दी कि वे अपने काम के बीच सप्ताहांत में बच्चों के साथ समय बिताएं, उनके साथ एक साथ भोजन करें, उन्हें संस्कृति और परंपराओं की जानकारी दें और विशेष रूप से उनकी मातृभाषा सिखाएं। उनका मानना है कि मातृभाषा का जीवन में एक विशेष स्थान होता है और यह हमारे बच्चों को जड़ों से जोड़कर रखती है।

भारत की सुंदरता : मध्य प्रदेश की अनूठी धरोहरों की प्रशंसा

सुधा मूर्ति (Sudha Murty) ने भारतीय संस्कृति और धरोहरों की भी प्रशंसा की। उन्होंने कहा, “भारत के पास देने के लिए बहुत कुछ है, बस हमें उसे देखने के लिए एक दृष्टि की आवश्यकता है।” उन्होंने विशेष रूप से मध्य प्रदेश के स्थानों जैसे साँची स्तूप, मांडवगढ़ और विदिशा की सुंदरता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि लोगों को बाहर जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि भारत में ही बहुत कुछ है जो उन्हें देखने और अनुभव करने को मिलेगा।

उन्होंने मध्य प्रदेश के मितावली में स्थित चौसठ योगिनी मंदिर का उदाहरण दिया, जो भारत के पुराने संसद भवन के डिजाइन का आधार था। इस संदर्भ से उन्होंने यह भी दिखाया कि हमारी धरोहर और स्थापत्य कला का कितना गहरा प्रभाव हमारे आधुनिक संरचनाओं पर पड़ा है।

रिश्तों में संतुलन : पति-पत्नी के बीच सामंजस्य का महत्व

सुधा मूर्ति ने पति-पत्नी के संबंधों के बारे में भी महत्वपूर्ण सलाह दी। उन्होंने कहा, “जब एक साथी नाराज हो, तो दूसरे को शांत रहना चाहिए। इससे संबंधों में संतुलन बना रहता है और एक दीर्घकालिक स्वस्थ संबंध सुनिश्चित होता है।” उनकी यह सलाह रिश्तों में सामंजस्य बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शन के रूप में सामने आई।

सादगी और दयालुता : बच्चों के साथ ‘आजी’ के रूप में जुड़ाव

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सुधा मूर्ति (Sudha Murty) की सादगी और दयालुता कार्यक्रम में तब साफ नजर आई जब बच्चों ने उनसे पूछा कि क्या वे उन्हें ‘आजी‘ कह सकते हैं, जिसका मतलब कन्नड़ में दादी होता है। उन्होंने गर्मजोशी से जवाब दिया, “।मैं सभी बच्चों की आजी हूँ” यह उनकी सहजता और बच्चों के प्रति उनके प्रेम को दर्शाता है।

उन्होंने माताओं को अपने बच्चों को उनकी मातृभाषा और हिंदी सिखाने के लिए प्रोत्साहित किया। साथ ही, उन्होंने उभरते लेखकों को पढ़ने और लिखने की आदत विकसित करने की सलाह दी।

सुधा मूर्ति (Sudha Murty) की प्रेरणा : सीखने का संदेश

सुधा मूर्ति की यह बातें हर किसी के लिए एक प्रेरणा हैं। उन्होंने अपने जीवन के हर पहलू को इस तरह से साझा किया कि यह साफ हो गया कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती। उन्होंने सभी को यह संदेश दिया कि चाहे हम कितनी भी उम्र के हों, जीवन में नया सीखने और आगे बढ़ने की कोई सीमा नहीं होती। उनकी यह प्रेरणादायक बातें हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि हम अपने जीवन में किस तरह से नये अवसरों का स्वागत कर सकते हैं।

सुधा मूर्ति की यह प्रेरणादायक बातें हर उम्र के व्यक्ति को यह समझाती हैं कि सीखना एक अनंत प्रक्रिया है। चाहे 74 की उम्र में राज्यसभा में शामिल होना हो या अपने लेखन के सफर को 50 की उम्र के बाद नई भाषा में शुरू करना हो, सुधा मूर्ति का जीवन इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि अगर आपके पास धैर्य और दृढ़ संकल्प है, तो आप जीवन के हर मोड़ पर कुछ नया सीख सकते हैं।

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