IPS Sanjukta Parashar :15 महीने में 16 एनकाउंटर, आतंकियों के दिलों में दहशत का नाम बनीं महिला आईपीएस”
भारत में जब भी साहस और कर्तव्यनिष्ठा की बात होती है, तो असम की आईपीएस अधिकारी संजुक्ता पराशर (Sanjukta Parashar) का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इस बहादुर महिला अधिकारी ने आतंकवाद के खिलाफ जिस दृढ़ता और साहस का प्रदर्शन किया, वह भारतीय पुलिस सेवा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में दर्ज हो चुका है। केवल 15 महीनों में 16 आतंकवादियों को मार गिराने और 64 से अधिक को गिरफ्तार करने वाली संजुक्ता ने यह साबित कर दिया कि हिम्मत और जज्बा हो, तो कोई भी चुनौती बड़ी नहीं होती।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा : असम से जेएनयू तक का सफर
संजुक्ता पराशर का जन्म और पालन-पोषण असम में हुआ, जहां उन्होंने अपने प्रारंभिक शिक्षा हासिल की। बचपन से ही उनके अंदर कुछ अलग करने की ललक थी। उन्होंने दिल्ली के इंद्रप्रस्थ कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उनकी शिक्षा का सफर यहीं खत्म नहीं हुआ, इसके बाद उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से इंटरनेशनल रिलेशन्स में मास्टर्स की डिग्री हासिल की। यहां से संजुक्ता की शैक्षिक यात्रा ने एक नया मोड़ लिया, जब उन्होंने अमेरिका की विदेश नीति में एमफिल और पीएचडी की पढ़ाई की। संजुक्ता ने उच्च शिक्षा में अपने असाधारण प्रदर्शन से यह स्पष्ट कर दिया कि वे किसी भी क्षेत्र में कमतर नहीं हैं।
आईपीएस बनने की प्रेरणा और सेवा में शुरुआत :
संजुक्ता पराशर की असली कहानी तब शुरू होती है जब उन्होंने 2006 में भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) में प्रवेश किया। उन्होंने ऑल इंडिया रैंक 85 हासिल की और असम-मेघालय कैडर को चुना। 2008 में, उनकी पहली पोस्टिंग असम के मकुम में असिस्टेंट कमांडेंट के रूप में हुई। यहां से उनका करियर एक नई दिशा में बढ़ा। जल्द ही उन्हें उदलगुरी में बोडो और बांग्लादेशियों के बीच हो रही हिंसा को नियंत्रित करने के लिए तैनात किया गया।
असम के आतंकवादियों के खिलाफ मोर्चा: सोनितपुर में सफलता की कहानी :
संजुक्ता पराशर (Sanjukta Parashar ) का सबसे महत्वपूर्ण योगदान असम के सोनितपुर जिले में पुलिस अधीक्षक (एसपी) के रूप में रहा। इस दौरान उन्होंने सीआरपीएफ की टीमों को लीड किया और बोडो उग्रवादियों के खिलाफ कई बड़े ऑपरेशन किए। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वे खुद एके-47 लेकर इन ऑपरेशनों में शामिल होती थीं। संजुक्ता न केवल अपनी टीम का नेतृत्व करतीं, बल्कि खुद भी आतंकवादियों के खिलाफ सीधी लड़ाई में शामिल रहती थीं।
उनकी बहादुरी की कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं, जिनमें वे आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन में सबसे आगे नजर आ रही थीं। उनके इस साहसिक रूप ने न केवल उनकी पहचान को एक नया आयाम दिया, बल्कि आम जनता के बीच भी उनका सम्मान बढ़ा।
15 महीने में 16 एनकाउंटर: जान से मारने की धमकियों का सामना :
2015 में, संजुक्ता पराशर (Sanjukta Parashar ) ने बोडो आतंकवादियों के खिलाफ एक बड़े ऑपरेशन की अगुवाई की, जिसने उन्हें पूरे देश में सुर्खियों में ला दिया। इस ऑपरेशन में, उन्होंने केवल 15 महीनों में 16 आतंकवादियों को मार गिराया और 64 से अधिक को गिरफ्तार किया। इस दौरान उनकी टीम ने भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद भी जब्त किया।
यह ऑपरेशन न केवल उनके करियर की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक था, बल्कि इसने असम के आतंकवादियों के दिलों में भी संजुक्ता का नाम खौफ का पर्याय बना दिया। इससे पहले, 2014 में उनकी टीम ने 175 आतंकवादियों को गिरफ्तार किया था और 2013 में 172 को पकड़ा था। इस तरह के लगातार सफल ऑपरेशनों ने उन्हें एक आदर्श पुलिस अधिकारी के रूप में स्थापित कर दिया।
धमकियों के बावजूद न डरीं, न रुकीं :
आतंकी संगठनों से संजुक्ता को कई बार जान से मारने की धमकियां मिलीं, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने कर्तव्यों से पीछे हटने का विचार नहीं किया। हर बार जब उन्हें धमकी मिली, उन्होंने इसे और ज्यादा दृढ़ता के साथ जवाब दिया। संजुक्ता का मानना है कि अगर आप अपने कार्य में ईमानदार और साहसी हैं, तो कोई भी खतरा आपको आपके मार्ग से विचलित नहीं कर सकता।
संजुक्ता की साहसिक भूमिका और भविष्य की प्रेरणा :
संजुक्ता पराशर (Sanjukta Parashar ) न केवल असम की, बल्कि पूरे देश की महिलाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं। उन्होंने यह साबित कर दिया है कि महिलाओं के लिए कोई भी क्षेत्र मुश्किल नहीं है, बशर्ते उनके पास दृढ़ संकल्प और साहस हो। उनके द्वारा किए गए साहसिक कार्यों ने न केवल उनकी प्रशंसा अर्जित की है, बल्कि उन्हें एक ऐसे प्रतीक के रूप में स्थापित किया है, जिसने भारतीय पुलिस सेवा में महिलाओं की भूमिका को एक नई पहचान दी है।
संजुक्ता पराशर की कहानी साहस, समर्पण और संकल्प की कहानी है। उन्होंने अपनी निडरता से न केवल आतंकवादियों के दिलों में खौफ पैदा किया, बल्कि आम जनता के बीच सुरक्षा की भावना को भी मजबूती से स्थापित किया। संजुक्ता की कहानी उन सभी के लिए प्रेरणा है, जो अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए अपने महिला होने की कठिनाइयों का सामना करने से नहीं डरते।
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