Shardiya Navratri 2025 Special: शारदीय नवरात्रि के अवसर पर आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे, जो तांत्रिक क्रियाओं के लिए काफी प्रसिद्ध है. और तो और यहां की मूर्तियां आपस में बात करती हैं.
Shardiya Navratri : भारत की धरती सदियों से रहस्यमयी और चमत्कारिक स्थलों की जननी रही है। यहां हर राज्य, हर शहर और हर गांव में कुछ ऐसे धार्मिक स्थल मौजूद हैं, जो अपने अनूठे इतिहास और चमत्कारों की वजह से लोगों की आस्था का केंद्र बन जाते हैं। बिहार का बक्सर जिला भी ऐसा ही एक रहस्यमयी मंदिर अपने आंचल में समेटे हुए है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वहां स्थापित मूर्तियां आधी रात के बाद आपस में बातचीत करती हैं। इस मंदिर का नाम है—राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी मंदिर।
यह मंदिर न सिर्फ तांत्रिक साधना के लिए प्रसिद्ध है बल्कि यहां कई ऐसी परंपराएं निभाई जाती हैं, जो किसी और देवी मंदिर में देखने को नहीं मिलतीं। सबसे खास बात यह है कि यहां पर शारदीय या चैत्र नवरात्रि जैसे बड़े पर्व पर भी कलश स्थापना नहीं की जाती। आइए जानते हैं इस मंदिर का रहस्य, इतिहास और आस्था से जुड़े पहलुओं को विस्तार से।
मंदिर का रहस्य: मूर्तियां करती हैं आपस में बात
राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी मंदिर की सबसे रहस्यमयी मान्यता यही है कि यहां आधी रात के बाद मूर्तियां आपस में संवाद करती हैं। स्थानीय लोगों और पुजारियों के अनुसार, रात के सन्नाटे में मंदिर के भीतर से ऐसी आवाजें आती हैं, जैसे दो या अधिक लोग सामान्य बातचीत कर रहे हों। यह आवाज इतनी स्पष्ट होती है कि सुनने वाले को यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि यह आवाज केवल भ्रम है।
विज्ञान भले ही इसे ध्वनि-तरंगों या पर्यावरणीय प्रभावों से जोड़ने की कोशिश करे, लेकिन सच्चाई यह है कि कई दशकों से लोग इस रहस्य को अपनी आंखों और कानों से महसूस कर चुके हैं। यही कारण है कि मंदिर में भक्तों का विश्वास और भी गहरा होता चला गया।
मंदिर में नहीं होती कलश स्थापना
भारत में नवरात्रि के अवसर पर हर मंदिर और घर में कलश स्थापना की परंपरा होती है। कलश को शक्ति और शुभता का प्रतीक माना जाता है। लेकिन बक्सर के इस मंदिर में यह परंपरा कभी निभाई नहीं जाती।
यहां तक कि शारदीय और चैत्र नवरात्रि जैसे महापर्व पर भी कलश स्थापित नहीं किया जाता। इसके पीछे मान्यता है कि यह मंदिर तांत्रिक क्रियाओं और साधनाओं का प्रमुख स्थल है। यहां साधना करने वाले साधक कलश स्थापना से जुड़े नियमों का पालन नहीं करते क्योंकि यह स्थान अलग ही तांत्रिक महत्व रखता है।
तांत्रिक साधना का प्रमुख केंद्र
डुमरांव नगर के लाला टोली मोहल्ला में स्थित यह मंदिर तांत्रिक साधना के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहां साधक अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए विशेष पूजा-पाठ और साधना करते हैं। कहा जाता है कि मंदिर की शक्तियां इतनी प्रबल हैं कि सच्चे मन से की गई तांत्रिक साधना कभी असफल नहीं होती।
तांत्रिक ग्रंथों में भी इस मंदिर का जिक्र मिलता है और इसे उन चुनिंदा स्थलों में गिना जाता है, जहां साधना जल्दी फल देती है। यही कारण है कि नवरात्रि और अमावस्या की रातों में यहां देशभर से साधक पहुंचते हैं।
तीन महाविद्याओं और भैरवों का अद्भुत संगम
इस मंदिर में प्रधान देवी राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी की स्थापना की गई है। उनके साथ-साथ यहां मां बगलामुखी और तारा देवी की भी पूजा होती है। इसके अतिरिक्त यहां पांचों भैरव—
- दत्तात्रेय भैरव
- बटुक भैरव
- अन्नपूर्णा भैरव
- काल भैरव
- मातंगी भैरव
की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं।
यही नहीं, मंदिर परिसर में दस महाविद्याओं की भी उपस्थिति है, जिनमें काली, त्रिपुर भैरवी, धुमावती, छिन्नमस्तिका, षोडशी, मातंगी, कमला, उग्रतारा और भुवनेश्वरी जैसी शक्तियां शामिल हैं। यह अद्भुत संगम इस मंदिर को और भी विशेष बनाता है।
मंदिर का 400 साल पुराना इतिहास
राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी मंदिर का इतिहास लगभग 400 साल पुराना है। इसकी स्थापना प्रसिद्ध तांत्रिक भवानी मिश्र ने की थी। उस समय से लेकर आज तक उनके वंशज ही मंदिर के पुजारी की भूमिका निभा रहे हैं।
इतिहासकार मानते हैं कि यह मंदिर महज पूजा का स्थान नहीं बल्कि तांत्रिक साधना का केंद्र था। भवानी मिश्र ने इस मंदिर को स्थापित कर शक्ति की साधना का एक प्रमुख केंद्र बनाया। तभी से यहां साधकों और भक्तों का तांता लगा रहता है।
प्रसाद की अनूठी परंपरा
इस मंदिर में देवी को प्रसाद के रूप में सूखे मेवे चढ़ाए जाते हैं। खासकर मां बगलामुखी और राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी को सूखे मेवे का भोग लगाने की परंपरा है। यह भी इस मंदिर की खासियत है क्योंकि सामान्यत: देवी मंदिरों में प्रसाद के रूप में मिठाई, हलवा या नारियल चढ़ाया जाता है।
आस्था और विज्ञान के बीच
मंदिर की आधी रात को सुनाई देने वाली आवाजें वैज्ञानिकों के लिए भी चुनौती हैं। कई बार विशेषज्ञों ने इस रहस्य को सुलझाने की कोशिश की लेकिन अब तक कोई ठोस निष्कर्ष सामने नहीं आया।
कुछ लोग इसे ध्वनि प्रतिध्वनि या वातावरणीय कंपन बताते हैं, जबकि भक्त इसे देवी की शक्ति और चमत्कार मानते हैं। यही आस्था मंदिर को और अधिक लोकप्रिय और रहस्यमयी बनाती है।
स्थानीय लोगों का विश्वास
डुमरांव और आसपास के इलाकों के लोग इस मंदिर से गहरा भावनात्मक रिश्ता रखते हैं। उनका मानना है कि यहां की देवी साक्षात जीवंत हैं और साधकों की मनोकामनाएं तुरंत पूरी करती हैं। कई लोगों ने बताया कि रात के समय मंदिर से निकलने वाली आवाजें उन्होंने खुद सुनी हैं।
कुछ लोग यह भी मानते हैं कि यह आवाजें देवी-देवताओं के संवाद का प्रतीक हैं और यह केवल उन भाग्यशाली लोगों को सुनाई देती हैं, जिनके भीतर आस्था प्रबल होती है।
धार्मिक पर्यटन का केंद्र
आज यह मंदिर सिर्फ स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र नहीं बल्कि बिहार और पूरे भारत के श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण बन चुका है। शारदीय और चैत्र नवरात्रि के दौरान यहां हजारों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं।
साधारण दिन में भी मंदिर में आने वाले श्रद्धालु इस रहस्य को जानने और देवी का आशीर्वाद लेने के लिए घंटों लाइन में खड़े रहते हैं।
क्यों है यह मंदिर अद्वितीय?
राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी मंदिर को अद्वितीय बनाने वाले कारण हैं:
- यहां मूर्तियों के आपस में बातचीत करने की मान्यता।
- कलश स्थापना की परंपरा का न होना।
- तांत्रिक साधना का प्रमुख केंद्र होना।
- तीन महाविद्याओं, पांच भैरव और दस महाविद्याओं का संगम।
- 400 साल पुराना इतिहास और भवानी मिश्र का योगदान।
- सूखे मेवे का अनोखा प्रसाद।
निष्कर्ष
बक्सर का राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी मंदिर केवल आस्था का नहीं बल्कि रहस्य और चमत्कार का भी केंद्र है। यह मंदिर इस बात का प्रमाण है कि भारतीय संस्कृति और धार्मिक स्थल सिर्फ पूजा-अर्चना तक सीमित नहीं हैं बल्कि वे आज भी ऐसे रहस्य समेटे हुए हैं, जिनका विज्ञान समाधान नहीं कर पाया है।
आधी रात को मूर्तियों की आवाजें, कलश स्थापना का न होना और तांत्रिक साधना की शक्ति—ये सब मिलकर इस मंदिर को विश्व के उन चुनिंदा धार्मिक स्थलों में शामिल करते हैं, जहां आस्था और रहस्य एक साथ जीवंत होते हैं।
बक्सर के इस मंदिर का अनुभव भक्तों के लिए सिर्फ पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उन्हें उस आध्यात्मिक और रहस्यमयी दुनिया से रूबरू कराता है, जहां विज्ञान भी सिर झुकाने पर मजबूर हो जाता है।
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