Supreme Court Chief Justice DY Chandrachud : दिव्यांग बेटी से प्रेरणा पाकर बने वीगन, बेटियों ने कैसे बदली उनकी जिंदगी
Supreme Court Chief Justice DY Chandrachud : दिव्यांग बेटी से प्रेरणा पाकर बने वीगन, बेटियों ने कैसे बदली उनकी जिंदगी
DY Chandrachud Daughters :सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ आज भारतीय न्यायपालिका के प्रमुख चेहरे हैं, लेकिन उनकी निजी जिंदगी उतनी ही प्रेरणादायक है जितनी उनकी पेशेवर सफलता। चंद्रचूड़ न केवल एक कर्तव्यनिष्ठ न्यायाधीश हैं, बल्कि वे एक संवेदनशील और जागरूक पिता भी हैं। खासकर उनकी दो गोद ली हुई बेटियां, प्रियंका और माही, उनके जीवन का केंद्र बन चुकी हैं, जिन्होंने उनकी सोच और जीवनशैली को पूरी तरह बदल दिया है। इन्हीं बेटियों के चलते डी.वाई. चंद्रचूड़ ने वीगन जीवनशैली को अपनाया, जो क्रूरता-मुक्त और पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवन जीने का उदाहरण है।
DY Chandrachud के वीगन बनने की प्रेरणा :
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने हाल ही में आयोजित एक कार्यक्रम में बताया कि उनकी दिव्यांग बेटी माही ने उन्हें वीगन जीवनशैली अपनाने की प्रेरणा दी। माही ने उन्हें यह समझाया कि जीवनशैली केवल मांसाहारी भोजन या डेयरी उत्पादों को छोड़ने भर से नहीं बदलती, बल्कि यह हर उस क्रूरता से मुक्त होनी चाहिए, जो किसी भी जीव पर आघात करती है। यह विचारधारा केवल खाने तक सीमित नहीं रहती, बल्कि जीवन के हर पहलू में झलकती है। चीफ जस्टिस ने स्वीकार किया कि माही पिछले 10 वर्षों से उन्हें इस ओर प्रेरित करती रही है और अब वे पूरी तरह से इस जीवनशैली को अपना चुके हैं।
गोद ली हुई बेटियां : संघर्ष और चुनौतियां
डी.वाई. चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) और उनकी पत्नी ने साल 2014 में उत्तराखंड के एक गरीब परिवार से प्रियंका और माही को गोद लिया। ये दोनों बच्चियां दिव्यांग थीं और उन्हें एक विशेष देखभाल की जरूरत थी। चीफ जस्टिस ने उस समय की चुनौतियों का जिक्र करते हुए बताया कि दिव्यांग बच्चों के लिए भारत में स्वास्थ्य सुविधाएं और स्कूलों की व्यवस्था कितनी कठिन है। खासकर तब, जब शुरुआती दौर में बच्चियों के स्वास्थ्य परीक्षण के दौरान उन्हें दर्दनाक अनुभवों का सामना करना पड़ा था।
उन्होंने बताया कि जब उनकी बड़ी बेटी का एक विशेष मेडिकल टेस्ट किया गया, तो वह इतनी तकलीफ में थी कि वह अपनी छोटी बहन माही के लिए यही कह पाई, “मेरी बहन पर ये वाला टेस्ट मत करना!” इस वाक्य ने चंद्रचूड़ को अपनी बेटियों की संवेदनशीलता और हिम्मत के प्रति गहरा सम्मान दिया।
शिक्षा और समाज में संघर्ष :
बच्चियों की शिक्षा के लिए भी चंद्रचूड़ और उनकी पत्नी को काफी संघर्ष करना पड़ा। उत्तराखंड और इलाहाबाद में दिव्यांग बच्चों के लिए विशेष स्कूलों की कमी ने उन्हें घर पर ही पढ़ाई करवाने पर मजबूर किया। लेकिन जब वे दिल्ली आए, तो वहां की स्थिति थोड़ी बेहतर थी। हालांकि, उन्हें मुख्यधारा के स्कूल में एडमिशन करवाने में भी दिक्कतें आईं।
मुख्यधारा के स्कूलों में सुविधाओं की कमी, जैसे कि साइंस लैब का बेसमेंट में होना, रैंप या लिफ्ट की अनुपलब्धता ने उन्हें इस बात का एहसास दिलाया कि समाज में दिव्यांग बच्चों के लिए समर्पित ढांचा अभी भी बहुत पीछे है। इसके अलावा, स्कूलों में एक्स्ट्रा-करीकुलर एक्टिविटीज में भाग लेने के मौके भी सीमित होते हैं। बच्चों को डिबेट या नाटक में हिस्सा नहीं लेने दिया जाता, क्योंकि स्कूल को डर रहता है कि दर्शक दो मिनट का इंतजार नहीं कर पाएंगे।
बेटी माही का पर्यावरण के प्रति प्रेम :
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपनी बेटी माही की पर्यावरण के प्रति जागरूकता की एक दिलचस्प घटना भी साझा की। कोरोना महामारी के दौरान जब ऑनलाइन क्लासेज चल रही थीं, तब माही ने क्लास के बीच में पेड़ काटने की आवाज सुनी। उसने तुरंत अपनी टीचर से ब्रेक लेने की इजाजत मांगी और व्हीलचेयर पर बैठकर बाग में चली गई, जहां कुछ लोग पेड़ों की कटाई कर रहे थे। माही ने उनसे पेड़ न काटने की गुजारिश की, यह बताते हुए कि पेड़ पर चिड़ियों के घोंसले हैं और अगर पेड़ कट जाएगा, तो चिड़ियों का घर भी उजड़ जाएगा। इस घटना ने माही की संवेदनशीलता और पर्यावरण के प्रति उसकी गहरी समझ को दर्शाया।
बेटियों ने बदली जिंदगी :
चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने अपनी बेटियों के साथ बिताए गए समय को अपने जीवन का सबसे मूल्यवान अनुभव बताया। उन्होंने कहा कि इन बेटियों ने न केवल उनके सोचने का तरीका बदला है, बल्कि बाहरी दुनिया से कैसे पेश आना है, यह भी सिखाया है। बेटियों ने उन्हें एक ऐसे समाज के निर्माण के प्रति समर्पित किया है, जहां हर बच्चा सुरक्षित महसूस कर सके।
बेटियों की मौजदूगी ने चंद्रचूड़ के जीवन में एक सकारात्मक बदलाव लाया है और उन्हें एक जिम्मेदार पिता और नागरिक बनाया है। बेटियों ने उन्हें न केवल परिवार में बल्कि समाज में भी एक नई दृष्टि दी है, जिससे वे अब एक बेहतर, संवेदनशील और जागरूक नागरिक के रूप में अपनी भूमिका निभा रहे हैं।
निष्कर्ष
डी.वाई. चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) की कहानी यह साबित करती है कि परिवार और बच्चों से मिली प्रेरणा हमें न केवल व्यक्तिगत रूप से बदल सकती है, बल्कि समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारियों को भी बढ़ा सकती है। उनकी बेटियों ने उन्हें न केवल एक बेहतर पिता बनाया, बल्कि एक ऐसा व्यक्तित्व भी, जो न्यायपालिका में अपने दायित्व के साथ समाज में संवेदनशीलता और जागरूकता फैलाने के लिए प्रेरित है। उनकी वीगन जीवनशैली और पर्यावरण के प्रति जागरूकता इसी बात का प्रमाण है।
To know about the news Cervical Pain , refer to the link below –
https://khabarhartaraf.com/cervical-pain/
To know more about this news , refer to the link below –
https://youtu.be/Op-C_DA1XAI?si=JAm7DOpd5zcxAZWx
1 COMMENTS