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What Is Dowry Harassment Law : क्या सच में ‘दहेज उत्पीड़न’ कानून पर एक बार फिर से विचार की जरूरत है? जानिए क्या है इस पर कानून के जानकारों और राजनेताओं की राय

What Is Dowry Harassment Law : क्या सच में ‘दहेज उत्पीड़न’ कानून पर एक बार फिर से विचार की जरूरत है? जानिए क्या है इस पर कानून के जानकारों और राजनेताओं की राय

Dowry Harassment Law

Dowry Harassment Law : बेंगलुरु के युवा एआई इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। एक होनहार युवा, जिसने अपनी मेहनत से एक सम्मानित करियर बनाया, आखिर ऐसी क्या वजह थी कि उसने अपनी जिंदगी को खत्म करने का फैसला किया? 90 मिनट का वीडियो और 24 पन्नों का सुसाइड नोट यह बताने के लिए पर्याप्त है कि अतुल मानसिक और भावनात्मक तनाव के भंवर में फंसा हुआ था। उसने अपनी पत्नी निकिता सिंघानिया पर दहेज उत्पीड़न और अप्राकृतिक यौन उत्पीड़न के झूठे आरोप लगाने का दोषी ठहराया।

यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति की त्रासदी नहीं है, बल्कि यह दहेज उत्पीड़न कानून (Dowry Harassment Law ) (आईपीसी 498ए ) के उपयोग और दुरुपयोग पर गहरी बहस को जन्म देती है। इस कानून का मूल उद्देश्य महिलाओं को उनके ससुराल में हो रहे उत्पीड़न से बचाना है। लेकिन, इसके गलत उपयोग के बढ़ते मामलों ने सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या यह कानून अपने उद्देश्य को सही तरीके से पूरा कर रहा है? या फिर यह उन निर्दोष व्यक्तियों को सजा दे रहा है, जिनका इस अपराध से कोई लेना-देना नहीं है?

दहेज उत्पीड़न कानून (Dowry Harassment Law) का उद्देश्य और वर्तमान परिदृश्य

भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए को 1983 में लागू किया गया था। इसका उद्देश्य महिलाओं को उनके पति और ससुराल वालों द्वारा किए गए मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करना था। इस कानून के तहत दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को तीन साल की जेल और जुर्माने की सजा हो सकती है।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट और अन्य न्यायालयों ने बार-बार कहा है कि इस कानून का दुरुपयोग बढ़ रहा है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, हर साल हजारों ऐसे मामले दर्ज होते हैं, जो बाद में झूठे पाए जाते हैं। इन मामलों में न केवल आरोपी पुरुष, बल्कि उनके माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्य भी प्रभावित होते हैं।

अतुल सुभाष की कहानी: एक दर्दनाक अनुभव

अतुल सुभाष के मामले ने इस मुद्दे को और भी गंभीर बना दिया है। अपने सुसाइड नोट में, उन्होंने लिखा कि उनकी पत्नी ने न केवल उन पर झूठे आरोप लगाए, बल्कि उनके परिवार को भी कानूनी दांव-पेंच में उलझा दिया।

उन्होंने लिखा: “मेरे माता-पिता को 120 बार कोर्ट जाना पड़ा। मेरे परिवार ने अपनी इज्जत और पैसे सब कुछ खो दिया। मैं अब और सहन नहीं कर सकता।”

उनकी यह आत्महत्या केवल एक व्यक्ति की हताशा नहीं है, बल्कि यह समाज और न्याय प्रणाली के लिए एक आईना है। यह घटना दिखाती है कि किस तरह से एक व्यक्ति कानून के दुरुपयोग का शिकार हो सकता है।

दुरुपयोग के बढ़ते मामले

एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि हर साल दर्ज किए गए 498ए के मामलों में लगभग 80% मामले ऐसे पाए जाते हैं, जो झूठे या साक्ष्य के अभाव में खारिज हो जाते हैं। यह न केवल न्याय प्रणाली पर बोझ डालता है, बल्कि उन निर्दोष लोगों के जीवन को भी नष्ट कर देता है, जो इन झूठे आरोपों का शिकार बनते हैं।

2014 में, सुप्रीम कोर्ट ने इसे “कानून का आतंक” (Legal Terrorism) करार दिया था। कोर्ट ने कहा कि इस कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए इसे सख्ती से लागू किया जाना चाहिए और मामलों की गहन जांच होनी चाहिए।

कानूनी विशेषज्ञों की राय

Dowry Harassment Law

  1. अधिवक्ता अश्विनी दुबे: “कानून का जेंडर न्यूट्रल होना जरूरी है। यह सुनिश्चित करेगा कि न केवल महिलाएं, बल्कि पुरुष और उनके परिवार भी कानून का समान लाभ उठा सकें।”
  2. अधिवक्ता मधु मुकुल त्रिपाठी: “न्यायपालिका को इस तरह के मामलों में निष्पक्षता रखनी चाहिए। यदि कोई महिला झूठा आरोप लगाती है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।”
  3. सामाजिक कार्यकर्ता रश्मि बंसल: “इस कानून के कारण कई महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हुई हैं, लेकिन इसका दुरुपयोग न केवल पुरुषों को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि उन महिलाओं को भी कमजोर कर रहा है, जो वास्तव में पीड़ित हैं।”

समाज पर प्रभाव

झूठे मामलों के कारण पुरुषों पर न केवल कानूनी, बल्कि मानसिक और भावनात्मक बोझ भी पड़ता है। कई बार इन आरोपों के कारण उनकी नौकरी, सामाजिक प्रतिष्ठा और पारिवारिक जीवन बर्बाद हो जाता है।

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, हर साल 1 लाख से अधिक पुरुष पारिवारिक तनाव के कारण आत्महत्या करते हैं। यह आंकड़ा बताता है कि हमें न केवल महिलाओं की सुरक्षा के लिए, बल्कि पुरुषों के लिए भी एक संतुलित और निष्पक्ष कानून की जरूरत है।

क्या कानून में बदलाव की जरूरत है?

कानून में बदलाव के लिए कई सुझाव दिए गए हैं:

  1. जांच का कड़ा प्रावधान: हर मामले की गहन और निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। बिना साक्ष्य के किसी को गिरफ्तार न किया जाए।
  2. जेंडर न्यूट्रल कानून: यह सुनिश्चित करना कि पुरुष और महिलाएं दोनों इस कानून के तहत न्याय पा सकें।
  3. झूठे आरोपों के खिलाफ सजा: यदि कोई व्यक्ति झूठे आरोप लगाता है, तो उसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
  4. समाज में जागरूकता: समाज को यह समझने की जरूरत है कि इस कानून का उद्देश्य न्याय देना है, न कि इसका दुरुपयोग करना।

Dowry Harassment Law पर अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य

दुनिया के कई देशों में दहेज या घरेलू उत्पीड़न से जुड़े कानून (Dowry Harassment Law ) हैं, लेकिन वे जेंडर न्यूट्रल हैं। उदाहरण के लिए:

  1. यूनाइटेड किंगडम: यहां घरेलू हिंसा से जुड़े कानून महिलाओं और पुरुषों दोनों को समान सुरक्षा प्रदान करते हैं।
  2. ऑस्ट्रेलिया: घरेलू हिंसा के खिलाफ कानून सभी लिंगों के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करता है।
  3. कनाडा: यहां घरेलू हिंसा के मामलों में दोषियों के लिए सख्त सजा का प्रावधान है, लेकिन यह जेंडर न्यूट्रल है।

समाधान की राह

अतुल सुभाष जैसे मामलों से यह स्पष्ट है कि हमें अपनी न्याय प्रणाली को सुधारने की जरूरत है। महिलाओं की सुरक्षा महत्वपूर्ण है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए कि पुरुषों के अधिकारों की अनदेखी की जाए।

समाज को यह समझने की जरूरत है कि झूठे आरोप न केवल न्याय व्यवस्था को कमजोर करते हैं, बल्कि उन सच्चे मामलों को भी कमजोर कर देते हैं, जिनमें पीड़ित को वास्तव में न्याय की आवश्यकता होती है।

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