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Jagarnath Mandir Ki Adbhut Mandir
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Jagarnath Mandir ki Adbhut Murti : धरती के बैकुंठ तीर्थ की क्यों रह गयी मूर्ति अधूरी

Jagarnath Mandir ki Adbhut Murti : धरती के बैकुंठ तीर्थ की क्यों रह गयी मूर्ति अधूरी

Jagarnath Mandir Ki Adbhut Mandir

पुरी के Jagarnath Mandir का इतिहास और भगवान जगन्नाथ की कथा अत्यंत रोचक और प्रेरणादायक है। यह कथा भगवान श्रीकृष्ण के नीलमाधव रूप से जुड़ी है और यह हमें प्राचीन भारतीय संस्कृति और धर्म की गहरी जड़ों से परिचित कराती है।

पुरी : धरती का वैकुंठ तीर्थ 

पुरी को पुराणों में सप्त पुरियों में से एक के रूप में माना गया है। स्कंद पुराण में इसे पुरुषोत्तम क्षेत्र कहा गया है। पूरी का Jagarnath Mandir धरती का वैकुंठ तीर्थ भी कहा जाता है और श्रीकृष्ण के शरीर के नील मेघ श्याम रंग के कारण नीलांचल कहा जाता है। पुरी में भगवान जगन्नाथ का विग्रह श्रीकृष्ण के रूप में स्थापित है।

भगवान नीलमाधव : अज्ञात जंगल से पुरी तक की यात्रा

किंवदंतियों के अनुसार, भगवान नीलमाधव का विग्रह पुरी से दूर एक जंगल में भील कबीले के पास था। भील कबीले के मुखिया विश्ववसु भगवान के भक्त थे और उन्होंने इस विग्रह को छिपाकर रखा था।

स्वप्न में भगवान का आदेश : समुद्र तट पर लकड़ी का कुंदा

पुरी के राजा इंद्रद्युम्न ने भगवान नीलमाधव की मूर्ति की स्थापना के लिए मंदिर बनवाने का निश्चय किया। भगवान ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि समुद्र तट पर उन्हें एक लकड़ी का कुंदा मिलेगा, जिससे उनकी मूर्ति बनाई जाएगी। राजा ने अपने परिवार के साथ समुद्र तट पर जाकर उस कुंदे को पाया, लेकिन उसे उठाने में असमर्थ रहे।

हनुमान जी की सलाह : प्रायश्चित का महत्व

राजा ने हनुमान जी से सहायता मांगी। हनुमान जी ने बताया कि यह कुंदा राजपरिवार के पाप के बोझ तले दबा है। राजा ने अपने छोटे भाई विद्यापति से सच्चाई जानी और प्रायश्चित किया।

विश्ववसु की क्षमा और ललिता का सम्मान

राजा इंद्रद्युम्न ने विश्ववसु से माफी मांगी और उनकी बेटी ललिता को राजपरिवार की बहू के रूप में स्वीकार किया। इसके बाद कुंदा भारहीन होकर उठ गया और मूर्तियों के निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाया गया।

देशभर के कारीगर असफल : देवशिल्पी विश्वकर्मा का प्रकट होना

कई कारीगरों ने मूर्ति निर्माण की कोशिश की, लेकिन असफल रहे। एक दिन एक वृद्ध शिल्पकार आया और उसने 21 दिन में मूर्तियाँ बनाने का वादा किया, बशर्ते उसे कोई न देखे।

21 दिन की शर्त : अधूरी मूर्तियाँ और उनकी दिव्यता

वृद्ध शिल्पकार ने मूर्तियाँ बनाना शुरू किया। 15 दिन बाद कक्ष से आवाज आनी बंद हो गई और रानी ने दरवाजा खोल दिया। शिल्पकार गायब हो गया और अधूरी मूर्तियाँ मिलीं। राजा ने इन्हें भगवान की इच्छा मानकर मंदिर में स्थापित किया।

द्वापर युग की याद : श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा का दिव्य स्वरूप

अधूरी मूर्तियाँ श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा का दिव्य स्वरूप दर्शाती हैं, जैसा कि द्वापर युग में नारद मुनि ने देखा था। यह मूर्तियाँ भगवान की विशेष लीला और दिव्यता को प्रकट करती हैं।

श्री मंदिर : भक्तिभाव और समर्पण का प्रतीक

Jagarnath Mandir Ki Adbhut Murti

राजा इंद्रद्युम्न, विश्ववसु और विद्यापति की भक्तिभावना और समर्पण से पुरी का श्री मंदिर स्थापित हुआ। यह मंदिर धरती का वैकुंठ तीर्थ और भगवान जगन्नाथ का निवास स्थान बना।

पुरी की रथयात्रा : भक्ति और उत्सव का संगम 

हर साल पुरी Jagarnath Mandir में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है, जिसमें लाखों भक्त हिस्सा लेते हैं। यह यात्रा भक्ति, उल्लास और समर्पण का प्रतीक है, जो पुरी के जगन्नाथ मंदिर के महत्व को और बढ़ाती है।

कथा का सारांश

पुरी के राजा इंद्रद्युम्न ने भगवान नीलमाधव की मूर्ति की स्थापना के लिए समुद्र तट पर लकड़ी का कुंदा पाया। हनुमान जी की सलाह से पाप का प्रायश्चित करने के बाद कुंदा भारहीन होकर उठ गया। कई कारीगरों की असफलता के बाद एक वृद्ध शिल्पकार ने 21 दिन में मूर्तियाँ बनाने का वादा किया, लेकिन 15 दिन बाद ही वह गायब हो गया और अधूरी मूर्तियाँ मिलीं। राजा ने इन्हें भगवान की इच्छा मानकर मंदिर में स्थापित किया।

पुरी के Jagarnath Mandir की कथा और इतिहास हमें प्राचीन भारतीय संस्कृति और धर्म की गहरी जड़ों से परिचित कराते हैं। यह कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और समर्पण से भगवान की कृपा प्राप्त होती है और वह हर कठिनाई को दूर करते हैं। पुरी की रथयात्रा भगवान जगन्नाथ की महिमा और भक्ति का प्रतीक है, जो हर साल लाखों भक्तों को आकर्षित करती है।

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