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Lata Mangeshkar
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Lata Mangeshkar Big Competition : बॉलीवुड की अनसुनी स्वर साम्राज्ञी जिससे छीना गया अब तक का सर्वश्रेष्ठ गाना , लगा सदमा

Lata Mangeshkar Big Competition : बॉलीवुड की अनसुनी स्वर साम्राज्ञी जिससे छीना गया अब तक का सर्वश्रेष्ठ गाना , लगा सदमा

Lata Mangeshkar

Lata Mangeshkar एक ऐसा नाम जो भारतीय संगीत जगत में अपनी मधुर आवाज़ और सुरीले गानों के लिए जाना जाता है। लेकिन उस वक़्त एक और बेहद टैलेंटेड   गायिका थी सुमन कल्याणपुरी लेकिन यह दुखद है कि उन्हें वह पहचान और सम्मान नहीं मिल पाया जिसकी वे वास्तव में हकदार थीं। सुमन कल्याणपुर का जीवन, उनकी संघर्षमयी यात्रा और वह दुखद घटना जिसने उनके दिल को गहरी चोट पहुंचाई, आज भी संगीत प्रेमियों के बीच एक चर्चा का विषय है।

प्रारंभिक जीवन और करियर की शुरुआत :

सुमन कल्याणपुर का जन्म सुमन हेम्मडी के रूप में हुआ था। उनके संगीत करियर की शुरुआत 1954 में हुई और उन्होंने अपने समय के मशहूर गायकों जैसे मोहम्मद रफी, मुकेश, गीता दत्त, आशा भोसले, हेमंत कुमार, तलत महमूद, किशोर कुमार, मन्ना डे, महेंद्र कपूर और शमशाद बेगम के साथ कई सुपरहिट गाने गाए।

सुमन ने अपने करियर में हिंदी में कुल 857 गाने गाए। ‘आज कल तेरे मेरे प्यार के चर्चे’, ‘ना ना करते प्यार’, ‘जिंदगी इम्तिहान लेती है’, ‘मेरा प्यार भी तू है’, और ‘तुमने पुकारा और हम चले आये’ जैसे गाने आज भी संगीत प्रेमियों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं।

सुमन और लता मंगेशकर की तुलना :

Lata Mangeshkar

सुमन कल्याणपुर की आवाज़ इतनी सुरीली और मधुर थी कि उन्हें अक्सर Lata Mangeshkar से तुलना की जाती थी। उनकी आवाज़ में वही मिठास और गहराई थी जो लता जी की आवाज़ में सुनाई देती थी। कई मौकों पर, सुमन की आवाज़ लता मंगेशकर से भी अधिक प्रभावशाली मानी जाती थी। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन्हें वह पहचान और सम्मान नहीं मिल पाया जो लता मंगेशकर, आशा भोसले, किशोर कुमार और अन्य बड़े गायकों को मिला।

सुमन का असली नाम सुमन हेम्मडी था, लेकिन 1958 में मुंबई के बिजनेसमैन रामानंद कल्याणपुर से शादी के बाद उन्होंने अपना नाम बदलकर सुमन कल्याणपुर रख लिया। उनकी एक बेटी है जिसका नाम चारुल अग्नि है और वह अमेरिका में रहती हैं।

‘ए मेरे वतन के लोगो’ का दर्दनाक सच :

सुमन कल्याणपुर के करियर का सबसे दुखद पहलू वह घटना है जब उनके हाथ से एक बेहद महत्वपूर्ण और पॉपुलर गाना छीन लिया गया था। यह गाना था ‘ए मेरे वतन के लोगो’। इस गाने को लता मंगेशकर ( Lata Mangeshkar ) ने गाया, लेकिन इसे पहले सुमन कल्याणपुर को ऑफर किया गया था।

सुमन कल्याणपुर ने इस गाने की पूरी तैयारी कर ली थी और उन्हें इसे पंडित जवाहरलाल नेहरू के सामने गाने का मौका भी मिला था। लेकिन जब वह नेहरू के सामने पहुंचीं, तो उन्हें यह गाना गाने का मौका नहीं दिया गया और उन्हें एक दूसरे गाने को गाने के लिए कह दिया गया।

यह घटना सुमन के लिए एक बड़ा सदमा था। उन्होंने इस गाने की बहुत मेहनत और लगन से प्रैक्टिस की थी, लेकिन उन्हें यह गाना गाने का मौका नहीं मिला। सुमन कल्याणपुर ने एक इंटरव्यू में इस घटना का खुलासा किया था और बताया था कि यह बात उन्हें आज भी चुभती है।

असली पहचान की कमी :

यह दुखद है कि सुमन कल्याणपुर को उनकी मधुर आवाज़ और शानदार गानों के बावजूद वह ओहदा नहीं मिल पाया जो लता मंगेशकर, किशोर कुमार, मन्ना डे और अन्य बड़े गायकों को मिला। उनके गाने रेडियो और टीवी पर छाए रहते थे, लेकिन फिर भी उन्हें वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसकी वह हकदार थीं।

सुमन कल्याणपुर की विरासत  :

सुमन कल्याणपुर आज भी संगीत प्रेमियों के बीच एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। उनके गाने आज भी सुनते समय मन को सुकून और शांति प्रदान करते हैं। वह 87 साल की हो चुकी हैं, लेकिन उनके गाने आज भी उतने ही ताजगी भरे और प्यारे लगते हैं जितने उनके समय में थे।

सुमन कल्याणपुर की कहानी हमें यह सिखाती है कि प्रतिभा और मेहनत के बावजूद कभी-कभी किस्मत और हालात किसी के जीवन की दिशा को बदल सकते हैं। उनके गानों की मधुरता और सुरीली आवाज़ हमेशा हमारे दिलों में बसी रहेगी और हमें याद दिलाती रहेगी कि सच्ची कला और प्रतिभा कभी फीकी नहीं पड़ती।

निष्कर्ष

सुमन कल्याणपुर की आवाज़ और उनके गाने भारतीय संगीत जगत के लिए एक अनमोल धरोहर हैं। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि संघर्ष और कठिनाइयों के बावजूद, सच्ची कला और प्रतिभा कभी दबाई नहीं जा सकती। उनके गाने हमें हमेशा याद दिलाते रहेंगे कि सच्ची सुंदरता और मधुरता क्या होती है। सुमन कल्याणपुर, एक अनसुनी स्वर साम्राज्ञी, हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगी।

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