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Nambi Narayanan
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Nambi Narayanan Case 1994 : कैसे एक होनहार ISRO वैज्ञानिक फंसा पुलिस फ्रॉड सिस्टम के जाल में

Nambi Narayanan Case 1994 : कैसे एक होनहार ISRO वैज्ञानिक फंसा पुलिस फ्रॉड सिस्टम के जाल में

Nambi Narayanan

Nambi Narayanan एक भारतीय एरोस्पेस वैज्ञानिक हैं जिन्होंने ISRO (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है। नारायणन क्रायोजेनिक्स डिवीजन के प्रभारी रहे हैं और उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए कई महत्वपूर्ण तकनीकों का विकास किया है। उन्हें मार्च 2019 में भारत के तीसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार, पद्म भूषण, से भी सम्मानित किया गया।

जासूसी का आरोप और गिरफ्तारी :

यह मामला पहली बार 30 नवंबर 1994 को सामने आया था, जब केरल पुलिस और आईबी की टीम ने Nambi Narayanan को ISRO से जुड़े अहम दस्तावेजों को लीक करने के आरोप में गिरफ्तार किया। इन आरोपों के तहत कहा गया कि नारायणन ने मालदीव की दो महिलाओं को ISRO के गुप्त दस्तावेज देने के लिए पैसे लिए थे। यह वाक्य है साल 1994 का जब नारायणन पर दो कथित अधिकारी कार्य ने कथित आरोप लगाये थे, उनके नाम मरियम रशीद और फौजिया हसन था।

इन दोनों ने नंबी नारायणन पर रॉकेट व उपग्रह से संबंधित गोपनीय जानकारी भारत के बाहर भेजना का आरोप लगा था. जिस लॉंच के कारण आरोप लगा था उसको ‘‘ उड़ान परीक्षण डेटा’’ के नाम जाना जाता है. इस स्थिति में उन पर कई मानसिक यातनाएं दी गई थी. इन आरोपों के आधार पर नारायणन को कई दिनों तक जेल में भी रहना पड़ा। उनकी गिरफ्तारी उनके एक सहयोगी के बयान के आधार पर की गई थी, जिसने पुलिस को बताया था कि नंबी को इसरो से जुड़ी कुछ अहम जानकारी और दस्तावेज को लीक करने के लिए पैसे मिले हैं।

CBI की जांच और सुप्रीम कोर्ट का फैसला :

इस मामले को बाद में CBI को सौंपा गया था। जब CBI ने इस मामले की जांच की, तो पता चला कि नंबी नारायणन पर लगाए गए तमाम आरोप पूरी तरह से निराधार और बेबुनियाद थे। CBI ने अपने आरोपी पत्र में कहा कि अस विजयन उस समय केरल पुलिस के स्पेशल ब्रांच के अधिकारी थे और सप के पद से रिटायर हुए। CBI की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने नंबी नारायणन को बाइज्जत बरी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि केरल सरकार इस मामले में अपनी जांच जारी नहीं रख सकती।

सत्ता की ताकत से कोई कुछ भी कर सकता है. फिस चाहे देश को बर्बाद करना हो या बनाना. ऐसे मे सत्ता के सत्ताधारी ही उनको गलत आरोपों मे फसाया जा रहा था. साल 1996 में केरल की कोर्ट ने उन्हें निर्दोष साबित किया और इस केस से जुड़े सभी आरोपियों को निर्दोष ठहराया और उन्हें जेल से रिहा कर दिया. उनकी रिहाई के बाद केरल की सरकार ने उनकी जांच एक बार और करने की अपील की परन्तु भारत की सर्वोच्च कोर्ट ने उनकी इस जांच करने करने ही अपील को खारिज कर दिया.

मुआवजा और सम्मान :

2018 में, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने नारायणन को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया था। यह मुआवजा उन्हें झूठे आरोपों और गलत गिरफ्तारी के लिए दिया गया था।

नंबी नारायणन का प्रारंभिक जीवन :

Nambi Narayanan का जन्म 12 दिसंबर 1941 को तमिल हिंदू परिवार में हुआ था। उनका गांव तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में पड़ता है। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा नागरकोइल के हायर सेकेंडरी स्कूल से पूरी की और आगे की पढ़ाई के लिए मदुरै के त्यागराज कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग चले गए। वहाँ से उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बैचलर ऑफ टेक्नोलॉजी की डिग्री प्राप्त की। वर्ष 1966 में, नारायणन ने ISRO में बतौर तकनीकी सहायक के रूप में काम करना शुरू किया।

नंबी नारायणन के कार्य और उपलब्धियाँ :

Nambi Nrayanan

नारायणन ने ISRO में कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स पर काम किया और भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने क्रायोजेनिक्स तकनीक के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया, जो रॉकेट इंजन के लिए एक महत्वपूर्ण तकनीक है। उनके इस योगदान के लिए उन्हें कई सम्मान मिले, जिसमें पद्म भूषण भी शामिल है।

नंबी नारायणन की कहानी का महत्व :

नंबी नारायणन की कहानी न केवल एक वैज्ञानिक के संघर्ष और सफलता की कहानी है, बल्कि यह हमारे पुलिसिया सिस्टम की खामियों को भी उजागर करती है। यह कहानी बताती है कि कैसे एक होनहार वैज्ञानिक को झूठे आरोपों में फंसाया गया और उन्हें अपनी प्रतिष्ठा और स्वतंत्रता के लिए लड़ना पड़ा। नंबी नारायणन का यह संघर्ष आज भी हमें यह याद दिलाता है कि सत्य की जीत हमेशा होती है, चाहे कितनी भी बाधाएँ आएँ।

Nambi Narayanan की कहानी न केवल विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में उनके योगदान को दर्शाती है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाती है कि न्याय की लड़ाई में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएँ, अंततः सत्य की ही विजय होती है। उनकी कहानी हम सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत है और हमें यह याद दिलाती है कि सत्य और न्याय के मार्ग पर चलते हुए हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए।

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